मंगलवार, 14 अगस्त 2012



भोजपुरी से काहें डेरात बिया हिंदी?

 

ओंकारेश्वर पांडेय | Issue Dated: अगस्त 7, 2011
 
ओह दिन लंदन के हाउस ऑफ कॉमन्स में भोजपुरी के मान्यता के सवाल प हिंदी के बड़ विद्वान बौखला गइले. एक तरफ डॉ. कृष्ण दत्त पालीवाल, डॉ. श्याम नारायण पांडेय, कैलाश बुधवार अउर परमानंद पांचाल जइसन दिग्गज विद्वान रहन, अउर दोसरा ओर अकेल हम. पालीवाल जी ने कहलें- रउरा लोग खामखाह भोजपुरी के मान्यता देवे के मांग क रहल बानी. रउरा लोग के एह आंदोलन से हिंदी के नोकसान हो रहल बा. बंद करीं ई सब. हमनी के एकर समर्थन कबो ना करब. डॉ. श्याम नारायण पांडेय भी कहलें कि हम त जइसहीं सुननी कि भोजपुरी के पत्रिका द संडे इंडियन अउर दोसर लोग भोजपुरी आंदोलन के समर्थन क रहल बा, त हमार बात करे के इच्छे ना भइल. हम एकरा से दुखी बानी.


कैलाश बुधवार बीबीसी के अध्यक्ष रह चुक ल बाड़े. उहो डॉ. पालीवाल आ डॉ. श्याम नारायण जी के समर्थन कइलन. ई दूनों लोग हिंदी के बड़ विद्वान बाडऩ. डॉ. श्याम नारायण पांडेय त भोजपुरी क्षेत्र के ही रहे वाला बाडऩ अउर अब इंग्लैंड में बस गइल बाड़े. ऊ भोजपुरी के लोकगाथा लोरिकायन प भी बड़ा महत्वपूर्ण काम कइले बाडऩ. तबो ऊ भोजपुरी के आंदोलन से काहें दुखी बाड़े, ई हमरा जइसन भोजपुरी समर्थक खातिर बड़ा आश्चर्य के बात रहे. हम एह सब विद्वानन से विनम्रता से भोजपुरी के विरोध के कारण जानल चहनी.
  पहिले त ऊ लोग भोजपुरी के एगो बोली मात्र कह के समटे के कोशिश कइलन. बाकिर जब हम भोजपुरी भाषा के इतिहास, रचना संसार अउर लिपि आदि के गहन जानकारी उनका सामने रखनी त ऊ लोग चुप हो गइलें. हम पुछनी- ई हिंदियो त खड़ी बोली ही रहल बिया. देवनागरी लिपि से पहिले का भोजपुरी के कैथी लिपि अंग्रेजी शासन काल में कचहरी सब के भाषा ना रहे. फेर बात भइल - कि अबहीं एकर विकास अतना नइखे भइल कि एकरा के भाषा बना दीहल जाव. उनकर इहो तर्क हास्यास्पद रहे. हम कहनी- देश के 8 गो विश्वविद्यालयन में भोजपुरी के पढ़ाई हो रहल बा. बिहार अउर दिल्ली में अकादमी बा. चार गो चैनल अउर तमाम पत्र पत्रिका का अइसहीं निकल रहल बाड़ी स. हिंदी के बाद सबसे लोकप्रिय अउर लाभप्रद भोजपुरी के सिनेमा बा. दुनिया के बहुते देश में एकर स्वीकार्यता बा. फेर भारत में मान्यता से का नोकसान होई.


आखिर में कवनो जवाब ना सूझल त ऊ विद्वान बड़ा ईमानदारी से आपन बात कहलें कि देखीं - भोजपुरी अलग हो गइल त हिंदी बहुत कमजोर हो जाई. एकर संख्या बहुते कम हो जाई. एकर ताकत में कमी आ जाई. दरअसल इहे असली भय बा जवन भोजपुरी के मान्यता मिले में बाधक बन रहल बा. अबहीं हाले में साहित्य अकादमी के नया उपाध्यक्ष डॉ. विश्वनाथ तिवारी एगोबयान में ई कह के भोजपुरी के सीमित करे के कोशिश कइले कि ई त गीत संगीत तक सीमित बा. मूल सवाल ई बा कि का सांचहूं भोजपुरी गीत संगीत तके सीमित बिया? का एकरा मान्यता मिले से हिंदी के संसार सिमट जाई? का संविधान के आठवीं अनुसूची में भोजपुरी के शामिल होखेे से राष्ट्रभाषा बने के दावेदार हिंदी के विजय रथ रुक जाई?


समूचा हिंदी जगत में एह बात के लेके गंभीर चिंता लउकत बा. ई चिंता हिंदी भाषी राज्यन तक ही नइखे, ई चिंता दरअसल समूचा हिंदी विश्व में बा. ई अउर बात बा कि हिंदी के रोना रोवे वाला हिंदी के बड़ विद्वान आजो खुद हिंदी के राष्ट्रभाषा आ यूएन के भाषा बनावे के आंदोलन में शिथिल पड़त जा रहल बाड़े. अउर उनकर डर भोजपुरी, अवधी, मगही, अंगिका, राजस्थानी आदि के नया उभार से हो रहल बा. हम ओह विद्वानन के चिंता दूर करे के कोशिश कइनी. भोजपुरी के आवेे से मत डेराई. काहेंकि  भोजपुरी बोले वाला लोग हिंदी के समर्थक बा. हिंदी के शान बा. हिंदी साहित्य के दस गो बड़ नाम लीहल जाव त ओहमें से 8 गो भोजपुरिये माटी के होइहें. ऊ हिंदी के सेवा क रहल बाडऩ, करस. हिंदी के स्थान भोजपुरी त का कवनो भाषा नइखे ले सकत. भोजपुरी के लोग त हिंदी के पिता आ भोजपुरी के माता मानेलन. हिंदी अगर उनका के आपन बेटा ना मानी त बेटा के मजबूरन अलग होखे के पड़ी अउर तब हिंदी के जरूर नोकसान हो सकत बा.
बेहतर बा कि हिंदी के लोग भोजपुरी के मर्म, दर्द अउर भाव के समझें, अउर ओकरा संघर्ष में ओइसहीं साथ देव, जइसे भोजपुरी के लोग खड़ी बोली के राजभाषा हिंदी बनावे में देलस. दुराव के भाव भोजपुरियन में नइखे.फेर हिंदी के लोग दुराव के भाव काहें रखले बा? एह गलतफहमी से केकर भला होई? सांच त ई बा कि हिंदी के असली खतरा अंग्रेजी से बा. अंग्रेजी हिंदी के अखबारन तक में घुसत जा रहल बिया, अउर हिंदी विद्वान चुप बाड़े. भोजपुरी जइसन लोक भाषा मजबूत होई त हिंदी भी मजबूत होई.


 राहुल सांकृत्यायन भोजपुरी क्षेत्र में गइला प भोजपुरी में बोलत रहन. प्रभाष जोशी लोकभाषा के विकास के पक्षधर रहन. हिंदी राष्ट्रभाषा बने, विश्वभाषा बने, बाकिर भोजपुरी के ओकर हक देवे में दर्द काहें हो रहल बा. का मैथिली के मान्यता से हिंदी के कवनो नोकसान भइल? का छत्तीसगढ़ी के मान्यता मिले से हिंदी के नोकसान भइल? आज भोजपुरी के लेके हिंदी के परिवार में उथल पुथल मचल बा. हिंदी संसार के बाहरो एह सवाल प मंथन चल रहल बा. बढिय़ा होई कि एह मुद्दा प खुलल दिल से बात कइल जाव. बहस कइल जाव. एह आलेख के साथे हम अपना तमाम सुधी पाठकन के विचार एह मुद्दा प आमंत्रित क रहल बानीं.

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