गुरुवार, 12 मार्च 2009

हजार साल पुरान भासा के दरद


सब हथियारन छोड़ हाथ में रखिह लाठी
भोजपुरी भासा के एह इमेज बनावे के पीछे के कहानी बता रहल बाड़न ओंकारेश्वर पाण्डेय
हजार साल पुरान भासा के दरद
(ई आलेख द संडे इंडियन के ताजा अंक में छपल बा.)
सब हथियारन छोड़ हाथ में रखिह लाठी - लिंगुइस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया में भोजपुरी के अध्याय के शुरुआत विद्वान अंगरेज अधिकारी आ भासा वैज्ञानिक डॉ. जॉर्ज ए. ग्रियर्सन एही लाइन से कइले बाड़े. भोजपुरिया इलाका में प्रचलित गिरधर के ई कुंडली भोजपुरियन के वीर आ साहसी होखे के प्रमाण रहल बा. एह लाइन के साथे-साथे ग्रियर्सन इहो कहले बाड़े कि हिन्दुस्तान में नवजागरण के श्रेय मुख्य रुप से बंगाली आ भोजपुरिया लोगन के जाला. बंगाली लोग जवन काम कलम से कइले उहे काम भोजपुरिया अपना लाठी से कइले. ग्रियर्सन के एही बात में छुपल बा भोजपुरिया लोग के उपेक्षा, अनदेखी, अवहेलना आ अपमान के लंबा दास्तान. ग्रियर्सन भारत में अंगरेजी हुकूमत के हाकिम रहलन. विद्वान आ दूरदर्शी त रहबे कइलन. उनकर कहे के मतलब साफ रहे. बंगाली लोग त कलम चला चला के आजादी के आंदोलन के पक्ष में हवा बनावत रहन. बाकिर ठेंठ भोजपुरिया आपन लाठी उठा के अंगरेजन के मारि भगावे लगले. बाबू कुंअर सिंह से लेके मंगल पांडेय तक के विद्रोह के कहानी जन जन के जुबान प बा. गुजरात से आके महात्मा गांधी आपन सत्याग्रह आंदोलन के शुरुआत करे खाती बिहार के भोजपुरिया इलाका चंपारण के धरती असहीं ना चुनले रहन. लाठी के एह माटी में भरल आग के अंदाज उनका बढ़िया रहे.

बाबू कुंअर सिंह के नेतृत्व में अंगरेजन के खिलाफ भइल भोजपुरियन के लड़ाई के बारे में बाबू तोफा राय लिखले बाड़े-

खप्प करि असि घुसे लोथि गिरे भूमि धप्प
गोरा सिक्ख कटत देखि आयर दहलल नू
भूखल बाघ अस वीर भोजपुरी दल
पड़ल ललकारत हर बम्म बम्म करत नू


त एही से ग्रियर्सन भोजपुरिया लोग के लाठी के चर्चा कइले बाडे़. बाकिर इहो सोचल जाव कि का एकरा बहाने भोजपुरियन के पहचान आ इमेज एगो लड़ाकू जाति के बनावे के ना रहल हा ? याद करीं बिहार में लालू यादव के लाठी रैला. आ सोचीं कि का एही कुल्ह से भोजपुरिया आ बिहारी लोग के देस भर में इमेज ना खराब कइल गइल ?

इलाहाबाद में नेहरू खानदान के आनंद भवन के आज भलहीं भोजपुरिया इलाका में माने ना माने प तनी मतांतर होखे, बाकिर ओह घड़ी त ई भोजपुरिया नगर स्वतंत्रता आंदोलन के नेता लोगन के राजनीतिक केन्द्र रहल. याने समूचा भोजपुरी इलाका दहकत रहे.

त का ई मानल गलत होई कि अंगरेज एकर बदला लेवे खातिर भोजपुरिया लोगन के एक प्रांत में ना रहे देलन ?

भोजपुरियन के ई लाठी देस के आजादी त दियवलस, बाकिर ओकर बहुत बड़ कीमत एह समाज के चुकावे के पड़ल. हजारन साल पुरान भासा, जवन मुगल काल से लेके अंगरेजन के शासनकाल तक सरकारी कामकाज के भासा रहल, जवना के संख्या हिंदी के बाद भारत में सबसे जादे बा, जेकर लिपि कबहूं देवनागरी से जादे लोकप्रिय आ मान्यता प्राप्त सरकारी लिपि रहल बिया, जवना में गोरखनाथ आ कबीर से लेके भिखारी ठाकुर-महेन्दर मिसिर से आज तक हजारन साहित्यकार भइले -जवन भासा के फिलिम हिंदी के बाद सबसे जादे लोकप्रिय बड़ुवे, जवना में कइगो टीवी चैनल आ अब पत्रिको छपत होखे ओह भासा के संविधान के अठवों अनुसूची में जगह ना मिले, त एकरा पीछे कवनो बात जरूर बा.
सवाल ई बा कि का भोजपुरी के आजादी के आंदोलन में अगुआ बने के सजाय मिल रहल बा ? ना त केहू बतावे ना कि काहे अतना देर एही भासा खाती भाई?
भोजपुरी समाज, दिल्ली के अध्यक्ष अजीत दूबे एह भासा के मान्यता मिले में देरी से दुखी बाड़े, बाकिर दिल्ली में मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के एह बात खाती सराहेले कि ऊ कम से कम मैथिली भोजपुरी मिलाइये के एकेडमी त बनवा दीहली.बाकिर बिहार आ उत्तर प्रदेश में एकरा प राज्य सरकारन के ध्यान नइखे. देश के आठ गो विश्वविद्यालय में जब बीए, एमए से लेके पीएचडी तक लोग एह भासा में कर रहल बाड़े त इग्नू के याद आइल कि एकर फांउंडेशन कोर्स बनावल जाव.

ई काहे भुला देल गइल कि भोजपुरी माटी के सदल मिश्र देस के ओह चार लेखकन में रहन जेकरा हिंदी में पहिला साहित्य लिखे के जिमवारी देल गइल रहे ? काहे लोग भुला गइल कि एही भोजपुरी माटी में पाणिनी-पातंजल संस्कृत भासा के व्याकरण के रचना कइलन ? वरिष्ठ भोजपुरी लेखक गिरिजा शंकर राय गिरिजेश के कहनाम बा कि भोजपुरी के उपेक्षा एह माटी से पैदा होखे वाला नामी लेखक लोग कइलस. भोजपुरी पत्रिका पाती के संपादक डॉ. अशोक द्विवेदी

असल में भोजपुरी माटी के विद्वान लेखक आ साहित्यकार लोग पहिले संस्कृत आ फेर देस के भासा बनावे के व्यापक राष्ट्रहित खातिर हिंदी के अपनवले आ भोजपुरी के बलि चढ़ा दीहले. ई बलिदान हिंदी क्षेत्र के अलावा कवनो भासा के लोग ना कइलस.

आजादी के बाद जब राज्यन के बंटवारा भासा के नाम प भइल तबहूं भोजपुरी के भासा के आधार प प्रांत ना देवे के पीछे बांटो और राज्य करो के अंगरेजी मानसिकता शायद रहल बिया. आ तबहूं एह इलाका के नेता लोग राजनीति ना बूझले. अरे भाई आपन प्रांत आ भासा लेहला के बादे जब दोसर लोग अपना के भारतीय कहिंहें त खाली भोजपुरिये लोग काहें आपन भासा आ प्रांत छोड़ के चार राज्य में बंटल भारतीय रहिंहें.

द संडे इंडियन एह भासा के मान्यता दियवावे खातिर अभियान छेड़ले बा. पिछला साल भर से एह पत्रिका के जरिये हमनी के इहे बतावे के प्रयास कर रहल बानी जा कि भोजपुरी कवनो दोसर भासा के तुलना में कतहूं कम नइखे.

भोजपुरी एगो टकसाली भासा ह.जइसन लाठी मजबूत ओइसने भासा. चले लागी त अंधाधुंध. एही से विद्वान लोग एह भासा के व्याकरण के उलझन से उन्मु्क्त मनले बा. भोजपुरिया लोग के सुभावो अइसने होला. अपना प गर्व करे वाला. जिला भोजपुर ह भारत के सिंगार बबुआ. आ ओसहीं निडर -आरा जिला घर बा त कवन बात के डर बा.

भोजपुरी भासा के इतिहास हजारन साल पुरान बा. ई एगो अइसन भासा ह जवना के फइलाव आज भारत के उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ से लेके दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, गुवाहाटी ही ना बलुक देश के कोना कोना में बसल पुरबिया लोगन के बीच बा.

धरती पटल पर 4-5 महाद्वीपन में फैलल भोजपुरी करीब 20 करोड़ लोगन के मातृभासा ह. विश्व के भासवन में जापानी आ जर्मन के बाद एकर 10वां स्थान होई. भारत में त हिंदी के बाद ई दोसर सबसे बड़ भाषा बड़ले बिया. एकरा अलावा नेपाल, मॉरीशस, त्रिनिडाड, फिजी, सूरीनाम, नीदरलैंड्स, फ्रेंच गुयाना, केन्या आ कैरेबियाई देशन के अलावा रूस, अमेरिका, ब्रिटेन आ आन देशन में भोजपुरा के पताका लहरा रहल बिया. एकरा में अतना दम खम बा कि एकरा के संयु्क्त ऱाष्ट्र में भी मान्यता मिल सकेला. पर केहू माने के मांग करे तब नू. आखिर अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा दुनिया भर के सय गो भासा में भोजपुरी के शामिल क के एकर जानकार लोगन के अपना भासा विभाग में रखे के फैसला अइसहीं त ना नू कइले होइहें.

भारत के अतना महत्त्वपूर्ण भासा भोजपुरी के उपेक्षा खाती एह इलाका के राजनेता लोग कम जिमवार नइखन. ऱाष्ट्रपति से लेके एगो ना कइएक गो प्रधानमंत्री तक ई माटी देहलस. लालू यादव से लेके आजो ढेर नेता इहे भोजपुरी बोल के राजनीति में आपन खूंटा गड़ले बाड़न. बाकिर लानत बा एह लोगन प कि भोजपुरी आपन जायज मान सम्मान आ पहिचान खातिर टुकुर टुकुर राह ताक तिया.

जवन भासा उत्तर-मध्य आ पूर्वी भारत, बिहार के पश्चिमी भाग, झारखंड के उत्तरी-पश्चिमी भाग आ उत्तर-प्रदेश के पूर्वांचले में ना बलुक भारत के लगभग सभी नगर महानगर में बोलल जाले.

वास्तव में देखल जाए त भोजपुरिये भारत के पिहल भासा बिया जे अपना मातृभूमि भारत के साथे साथ लगभग आधा दरजन अउर देशन में अपना भाषाई सामर्थ्य आ बोले वाला लोगन के संख्या बल प स्वीकृत आ मान्य होखे के माद्दा रखत बिया. भारत आ नेपाल के अलावा भोजपुरी विश्व के अन्य देश जइसे गुआना, सूरीनाम, फीजी, त्रिनीदाद, टोबैगो, मॉरीशस आदि में बड़ पैमाना प बोलल आ बूझल जाला.

विश्वभर में भोजपुरी भासी लोगन के सही संख्या के अधिकृत रुप से ज्ञान नइखे. एगो बात इहो बा कि अधिकांश भोजपुरी भाषी लोग अपनी मातृभासा के रूप में हिंदी या उर्दू लिखेलन, जे भारत सरकार के जनगणना रिपोर्ट से साबित हो जाई.

पिछिला एक साल से सुन तानी कि भारत सरकार एह प्रक्रिया में बिया कि भारतीय संविधान के 8वां अनुसूची में एकरा के शामिल क के संवैधानिक दरजा दियाई. बाकिर चुनाव के घोसणा हो गइल, भोजपुरी के वादा एह सरकार के इयाद ना आइल. नेपाल के माओवादी सरकार के विदेशमंत्री उपेन्द्र यादव मूल रुप से बिहारे के हवन. ऊ वादा कइले बाड़े कि नेपालो में भोजपुरी, मैथिली आ अवधी के संवैधानिक मान्यता देहल जाई.

यह सत्य है की भोजपुरी दिन पर दिन निखरती और विस्तारित होती जा रही है। बालीवुड में हिंदी के बाद भोजपुरी फिल्मों का ही स्थान है। ये फिल्में भारतीय फिल्म-जगत में बुलंदी और एक सशक्त स्थान पर विराजमान हैं। भोजपुरी टीबी चैनल करोड़ो दर्शकों पर अपना जादू बिखेरकर उनके दिलों पर राज कर रहे हैं। आज बिना किसी सरकारी सहायता के भोजपुरी की पहली राष्ट्रीय समाचार पत्रिका 'द संडे इंडियन' की माँग बहुत ही बढ़ी है और यह पत्रिका अपनी सटीक और यथार्थ प्रस्तुति के कारण लाखों प्रबुद्ध भोजपुरी पाठकों और आलोचकों द्वारा भी सराही जा रही है।

परंतु अब समय आ गया है जब हम एक होकर इस नारे के साथ भोजपुरी को मजबूत करें, इसे इसका सही स्थान दिलवाएँ-
हिंदी हमार आन ह
त भोजपुरी पहचान ह

(अगर हिंदी हमनी जन के आन हS तS भोजपुरी असली पहिचान हS)