मंगलवार, 14 अगस्त 2012

भोजपुरी विरोधी पचौरी को जवाब

भाषाएं चीन भी नहीं होतीं पचौरी जी

देवेन्द्र तिवारी के साथे ओंकारेश्वर पांडेय 
भोजपुरी  को मान्यता  मिलने  की बढ़ती  संभावना  से कुछ  लोग घबरा  रहे  हैं. पहले तो हिंदी के कुछ प्रकांड पंडित भीतर भीतर भोजपुरी का विरोध करते थे, लेकिन अब कुछ विद्वान लेखक भोजपुरी के इस कदर खुले विरोध पर उतर आये हैं कि लगता है वे गाली गलौज भी कर बैठेंगे. कम से कम प्रख्यात लेखक सुधीश पचौरी के भोजपुरी को लेकर राष्ट्रीय हिंदी दैनिक राषट्रीय सहारा में छपे आलेख को पढ़कर तो ऐसा ही लगता है. श्री पचौरी ने अपने आलेख में  व्यंग्य  करते  हुएलिखा है  कि भाषाएं  कश्मीर नहीं  होतीं  कि जब चाहें अलग हो जायं. सुधीश जी  आलेख क्या भोजपुरी मैथिली का अपमान नहीं  है? क्या ये भोजपुरीमैथिली को हिंदी के खिलाफ खड़ करने  कवायद नहीं है? क्या ये भोजपुरी, जिसने  देश  आजादी के आंदोलन में बड़ी भूमिका निभायी, उसे राष्ट्रद्रोही करार देन नहीं हैदेश के भोजपुरी ही नहीं मैथिली, हिंदी और अन्य भाषाओं से जुड़े़ लेखको, पत्रकारों और आम लोगों ने उनके इस विचार की कड़ी भर्त्सना की है. मैं तो कहूंगा कि. यह भाषाई  सांप्रदायिकता  फैलाने  वाला विचार है. द संडे इंडियन  इसकी  कड़ी निंदा  करता है. भोजपुरी  के लिए  इस  तरह  की बात करना अपमानजक  है. जाहिरा तौर पर इसे जिसने भी पढ़ा, उसके मन में इसकी नकारात्मक प्रतिक्रिया हुई. इसकी बानगी फेसबुक पर देखने को मिली. कुछ उदाहरण पेश है:
ब्रजेश पाण्‍डेय ने कहा- सुधीश जी को देश के इतिहास का भान नहीं हैं कि देश को आजादी दिलाने में भोजपुरियों का क्‍या योगदान रहा है. भोजपुरिया माटी का अलग ही सुगंध हैं लेकिन सुधीश जी तो संगमरमर पैदा हुए है तो इनकी जुबान तो फि‍सलेगी ही. 
पुष्‍य मित्रा नेहा मेरे  हिसाब  से तो भोजपुरी, मैथिली,  मगही, अंगिका, ब्रज, बुंदेलखंडी,  मेवाती,मारवाड़ी जैसी भाषाओं ने हिंदी को मान्यता दी है...इन तमाम भाषाओं का इतिहास हिंदी से पुराना है...हिंदी तो इन तमाम भाषाओं को बांधने वाली डोर भर है.. जीतेंद्र ज्‍योति ने लिखा- हम मैथिलीवासी होने के बावजद भोजपुरी, भोजपुरिया लोग और भोजपु‍रिया अ‍ास्‍था का सम्‍मान करते हैं और कुछ लोगों को अगर भोजपुरी से डर लग रहा है तो डरें हमारा जो लक्ष्‍य हैं, हम उसे हासिल कर के रहेगें.
भोजपुरी का नंबर कम नहीं होगा, चिंता  करें. लोकतंत्र में नंबर का ही खेल होता है, और कुछ  लोगों को ये चिंता जरूर हो रही है कि भोजपुरी के स्वतंत्र भाषा बन जाने से हिंदी का  नंबर कम हो जाएगा. लेकिन भोजपुरी के लोग उस कमी को पूरा करेंगे, जब भी जरूरत पड़ेगी.  भाषा बनने दीजिये, पहले से इतना डर और नफरत ठीक नहीं.
सौरभ सिंह - सुधीश जी लिखते अच्‍छा हैं, पर डरे से लगते हैं, नहीं तो किसी भाषा के बारे में ऐसा नहीं बोलते. आप किसी की भाषा, संस्‍कृति और मां के बारे में ऐसा नहीं बोल सकते हैं. रवीन्‍द्र त्रिपाठी ने लिखा कि भोजपुरी को निश्चित तौर पर उचित दर्जा मिलना चाहिए साथ ही अवधी को बढ़ावा दिया जाना चाहिए. इन दोनों भाषाओं से हमारी राष्‍ट्रभाषा हिन्‍दी का गरव बढ़ेगा.
अतुल सिन्‍हा जीटीवी से जुड़े वरिष्ठ टीवी पत्रकार हैं, उनकी गंभीर प्रतिक्रिया थी कि सुधीश पचौरी ने तो कश्मीर को भारत से अलग मान लिया...यह उनका 'महान राष्ट्रप्रेम'है..भोजपुरी के बारे में या किसी भी भाषा के बारे में लिखने या टिप्पणी करने से पहले उसे समझने की कोशिश करें..किसी प्रांत या स्थान विशेष से जोड़कर देखने के नज़रिये से कोई भाषा पनप नहींसकती.. कम से कम पचौरी जी से तो ये उम्मीद नहीं ही की जा सकती. दरअसल किसी भाषा के बारे में 'भाषा की बाजीगरी' से तो बचना ही चाहिए.
राजेश सिंह राशो ने लिखा कि भोजपुरी भाषा का ज्ञान अंधकार से प्रकाश क ओर ले जाने वाला हैं. ऐसे लोगों को क्‍या मालूम कि महात्‍मा बुद्ध का जन्‍म कहां हुआ था. शायद ये बात उन्‍हें नहीं मालूम. कोई भाषा किसी को जोड़ती हैं, वो बुरी नहीं हो सकती. ऐसे में किसी का विरोध करना उसके मानसिक बीमारी का प्रतिफल माना जाएगा.
"भोजपुरी ज़िन्दगी", के संपादक संतोष कुमार पटेल ने लंबा जवाब दिया कि सुधीश पचौरी, छपास के महानायक, हिंदी भाषा के विकृत सोच के धनी और "बदनाम हुए तो क्यानाम तो हुआ". परिपाटी के अधता हैं. इनको हिंदी में कुछ भी लिखने, बोलने और बकने का ठेका मिला हुआ है .अपन आलेख में सुधीश जी ने भोजपुरी को कश्मीर तक बनाडाला. इनसे कोई पूछे ि केवल कश्मीर की कितनी भाषाएँ संविधान की आंठवीं अनुसूची में है. डोगरी, उर्दू और कश्मीरी..भोजपुरी ने इनका खेत तो काटा नहीं है. सुधीश जी यदिभोजपुरी को ईमानदारी पूर्वक जानते तो विरोध नहीं करते. हिंदी को अन्तरराष्ट्रीय पहचान दिलाने में भोजपुरी के गिरमीटिया मजदूर, जहाजी मजदूर, मधेशी भाई अपनी महत्वपूर्णभूमिका निभाई है. मॉरीशस, त्रिनिदाद, टोबागो, जमका, लैंड, सूरीनाम, फ्रेंच गुयाना, इंग्लिश गुयाना, नेपाल, जावा, सुमित्रा, साउथ अफ्रीका आदि जगहों पर यही भोजपुरी भाषा भाषीहिंदी को लेकर गए. रीशस में विश्व हिंदी सचिवालय भोजपुरी भाषा-भाषियों ने बनवाया है. भोजपुरी भाषा भाषिों ने अंग्रेजो के कोड़े खा कर हिंदी को दूध पिलाया और इनदेशो में स्थापित किया. हिंदी भोजपुरी भाषियों के पीठ पर चढ़ पर समुद्र  गयी ? सुधीश जी को भोला नाथ तिवारी की भाषा के जुडी किताबो का अध्यन कर लेना चाहिए.
सुधीश स्वयं जुगाड़ परम्परा के अधिनायक है. इन्होने मैथिली पर भी टिप्पणी कर दी. सच यही है कि हिंदी ओढी हु जातीय भाषा है.  इसके निर्माण में भोजपुरी क्षत्र के लोगो नेअपनी भाषा को पीछे कर दिया. हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने  भावना से इन्होंने भोजपुरी को छोड़ा. इसलिए कोई पचौरी टाइप  सोकल्ड विद्वान भोजपुरी को कोसने का मौकानहीं गवाता. हिंदी का रथ बढ़ रहा है.. भोजपुरी से हिंदी का कोई विरोध नहीं है.
सुधीश पचौरी ही नहीं, एक कृष्ण दत्त पालीवाल भी हैं, जिनको भोजपुरी से वीमारी है.  इनको भोजपुरी अइले -गइले भाषा लगती है  "बबुआ" ही दिखता है सुधीश को भोजपुरी में.सुधीश पूरी तरह "सठियाये बुढउ" हो गए है....
लेकिन सबसे कड़ा जवाब बिहार भोजपुरी अकादमी के अध्यक्ष रविकांत दूबे ने दिया. उन्होंने लिखा कि सुधीश पचौरी जैसे देश में लगभग आधे दर्जन ऐसे "मेंटल के" है जो भोजपुरी भाषाऔर साहित्य के विका से घबराकर अनर्गल और अपमानजनक बयानबाजी कर रहे है. और अपन बेतुकी बयानों से चर्चा में बने रहते है. भोजपुरी पट्टी के साहित्यकारों ने हिंदी साहित्य केविकास में जितना योगदान किया है, वह अद्वितीय और अविस्मरणीय है.
आशुतोष कुमार ने कहा कि पचौरी जी को इस तरह विभेद पैदा करने से बचना चाहिए. देवकांत पाण्‍डेय ने भी कहा कि बेवजह मुददा बना रहे हैं पचौरी जी जैसे लोग. हिन्‍दी और भोजपुरी में कोई वैमनस्‍ कब रहा है ? अनामी शरण बबल ने कहा कि कुछ लोग भाषा को अपने घर की रखैल बनाकर रखते हैं जब मौका मिलने पर प्‍यार और मौका मिलने पर दुत्‍कार. ये दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय के अंग्रजी दां हिन्‍दी अउर लोक भाषा के सबसे बड़े दुश्‍मन हैं.
अशोक दुबे ने लिखा कि मुझे लगता हैं सुधीश पचौरी को भोजपुरी भाषा संस्‍क़ृति और भगोल का सहीं ज्ञान नहीं हैं..हो सकता हैं कि मध्‍य प्रदेश से होने की वजह से भोजपुरी को मालवी या निमाड़ी या बघेली जैसी बो‍लियों की तरह समझ रहे हों. भोजपुरी भाषा का भूगोल मालवी या बघेली से बहुत बड़ा है. यह चार राज्‍यों में फैला हुआ है.. हककत यह है कि 20 करोड़ भोजपुरी भाषी जिस दिन अपने आप को हिन्‍दी भाष से अलग कर लेंगें उसी दिन पता चलेगा हिन्‍दी वालों को..हम लो लाठी चलाने में बहुत तेज होते हैं... शायद पचौरी जी को नहीं मालूम होगा....
 जब फेसबुक पर पचौरी जी के खिलाफ प्रतिक्रियाएं मर्यादा को लांघने लगीं तो उनके बचाव में वरिष्ठ पत्रकार और कई अखबारों के संपादक रहे राहुल देव आये और उन्होंने टिप्पणी की - यहाँ सक्रिय विद्वानों से अनुरोध - अगर आप सुधीश जी या कृष्णदत्त पालीवाल जी के बारे में ठीक से नहीं जानते हैं तो यह कोई अपराध नहीं। लेकिन बिना जाने अशिष्ट टिप्पणियाँकरके अपने ज्ञान और शिष्टाचार के प्रदर्शन से बचें। विषय पर मेरी टिप्पणी इंशा अल्लाह कल। हालांकि राहुल देव ने आगे टिप्पणी नहीं की. लगता है कि वे उनका आलेख पढ़कर चुप हो गये. आखिर में सुनील कुमार पाठक ने लिखा कि सुधीश पचौरी ऐसा ही अनर्गल प्रलाप करते हैं.उन्हें अपने मित्र डॉ.मैनेजर पाण्डेय जी से मशविरा कर लेना चाहिए. राकेश प्रवीर  सही कहा आपने... भोजपुरी को उसका हक मिलना चाहिए. सुधीश पचौरी फतवा देने वाले कौन होते है....
 मनोज कुमार  ऐसे ही लोग देश को भाषा और सम्‍मान के नाम पर बांटते है.

भोजपुरी विद्वानों के विचार

एक भाषा के रुप में हम भोजपुरी कि अवहेलना की कटु आलोचना करते है. लगभग 20 करोड़ लोगों की भाषा पर इस तरह से छिंटाकशीं करना, हेय दृष्टि से देखना तुक्ष्‍य मानसिकता परिचायक है. इस तरह के अनर्गल बयानबाजी विद़वानों को शोभा नहीं देती. 
- बृजमोहल प्रसाद अनारी  ‍‍

भोजपुरी जैसी उदार भाषा जों अपनी हीं नहीं वरन सम्‍पुर्ण जगत के कल्‍याण का गान गाती हैं, के प्रति पचौरी जी कि टिप्‍पणी उनके सं‍कीर्ण, औपनिवेश‍िक और सांमती दिमाग कि उपज है.
 - डॉ वीरेन्‍द्र नारायण यादव

भोजपुरी भाषा एवं भोजपुरिया संस्‍कार दधीचि के मार्ग पर चलकर हिन्‍दी के लिए समर्पित रहा है और भोजपुरी के विकास से हिन्‍दी का विकास मनोवैज्ञानिक रुप से जुड़ा है. भोजपुरी के खिलाफ कुछ भी लिखना या बयानबाजी करना बचाल प्रवृति का सूचक है. पचौरी जी और तिवारी जी आप जाने माने लो्ग है, अभी तो फागुन आया भी नहीं भांग के गोले क्‍यों छिटकने लगे.  
डॉ. जौहर साफि‍याबादी