बुधवार, 7 अप्रैल 2010

क्या चल गया नीतीश का जादू


कबीर भोजपुरी के पहिला कवि

कबीर भोजपुरी के पहिला कवि
ओंकारेश्वर पांडेय

भोजपुरिया लोग कबीर के आपन पहिला कवि मानेले. हालांकि उनका से पहिलहूं भोजपुरी में साहित्य रचल गइल, बाकिर ऊ छिटपुट रहे. नाथसिद्ध साहित्यो में छिटपुट रूप से भोजपुरी मिलेला, बाकिर कबीर साहित्य त पूरा तरह से भोजपुरी से भरल बा.


पिछला साल 7 जून के दिल्ली से छपे वाला एगो दैनिक अखबार में हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुडा के विज्ञापन छपल देखनीं. ई विज्ञापन कबीर जयंती पर रहे. विज्ञापन देख के मन में एक साथे दू गो विपरीत विचार उठल. पहिलका त ई कि एह बात के खुशी भइल कि चल कम से कम कवनो राज्य सरकार के याद त आइल कि कबीर नाम के कवनो अइसन संत साहित्यकारो रहन, जवन समाज के सुधार में आपन पूरा जिनगी गुजार देलन. दोसर ई कि दुनियाभर के भाईचारा के पाठ पढ़ावे वाला अइसन बड़ संत के भोजपुरिया क्षेत्र के नेता लोग भुला दीहल. ओह संत के जिनका के भोजपुरी के पहिला कवि मानल जाला. कबीर के याद ना त उत्तर प्रदेशे के सरकार के आइल अउर ना ही बिहारे सरकार के. एहिजा इहो बतावत उचित होई कि चलीं उत्तर प्रदेश सरकार रस्मीए तौर प सही बाकिर कम से कम उनकर जयंती प छुट्टी त क देला. बाकिर एगो बड़ भोजपुरी इलाका जवन बिहार में बा ओहिजा के सरकार के त कबीर कवनो हिंदी-भोजपुरी के महान संत-कवि रहन इहो याद ना आवे. एकरा से आज के राजनीतियो के पता चलेला, जेकरा में हर चीज के मुनाफा के हिसाब से देखल जाला. अउर कबीर एगो अइसन कवि रहन, जवन कि जात-पांत से लेके धर्म तक के खिलाफ रहन. अइसन में जात आ धर्म के खिलाफ खड़ा होखे वाला कबीर के याद कइल त उनके खातिर घातक हो जाई, उनकर भोट बैंक बिदक जाई. एह से साजिशनो कबीर के हाशिया प राखे के कोशिश कइल गइल. एकरा के कबीर के एह दोहा से समझल जा सकेला-
मेरा तेरा मनुआ कैसे इक होइ रे
मैं कहता हूं आंखिन देखी
तू कहता कागद की लेखी,
मैं कहता सुरझावन हारी,
तू राख्यो अरूझाई रे.

खाली एह चंद पंक्ति में आज के राजनेता के चरित्र उजागर हो रहल बा कि कइसे ऊ लोग सब कुछ अझुरा के रखले बा. ऊ ना चाहस कि कवनो समस्या के समाधान होखे अउर इहे बात बा कि कबीर दर्शन के साहित्य में जेतना जगह मिलल, राजनीतिक जगत ओकरा से ओतने दूर रहल. काहे कि कबीर के वाणी हमेशा दुखिया लोगन के पक्ष में रहे. उनकर बिंबो दबल-कुचलल बुनकर, धोबी, बढ़ई, लुहार, गुलाम, महरा आ भिखारी जइसन जमात से आवेले.
ओइसे त कबीर के प्रासंगिकता सर्व-समाज में बा. बाकिर भोजपुरिया लोग कबीर के आपन पहिला कवि मानेले. हालांकि उनका से पहिलहूं भोजपुरी में साहित्य रचल गइल, बाकिर ऊ छिटपुट रहे. नाथसिद्ध साहित्यो में छिटपुट रूप से भोजपुरी मिलेला, बाकिर कबीर साहित्य त पूरा तरह से भोजपुरी से भरल बा. कबीर जनकवि रहलें. दार्शनिक रहन. दबल-कुचलल समाज के आवाज रहलें. ऊ आपन जमाना के तमाम तरह के पोंगापंथ प प्रहार करे से ना चूकलन. बाकिर ऊ पोंगापंथ खाली ओही जमाना के ना रहे, आजुओ चारों ओर लउकेला-
माला फेरत जुग गाया, मिटा ना मन का फेर.
कर का मन का छाडि़, के मन का मनका फेर..

आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी उनका बारे में बड़ नीमन बात कहले बाड़े, ''जवन लोग कबीरदास के हिंदू-मुस्लिम धर्म के सर्व-समन्वयकारी मानेले ऊ का कहेले ठीक से बुझाला ना. कबीर के रास्ता एकदम साफ रहे. ऊ दूनों के रास्ता स्वीकार करे वाला में ना रहन. ऊ मय बाह्यïाचार के जंजाल आ संस्कार के विध्वंस करे वाला क्रांतिकारी रहन. समझौता उनकर रास्ता ना रहे. एतना बड़ जंजाल के ना करे के क्षमता कवनो मामूली आदमी में नइखे हो सकत. कमजोर स्नायु के आदमी एतना भार बरदाश्त नइखे क सकत. जेकरा आपन मिशन प अखंड विश्वास ना होखे, ऊ एतना साहसी नइखे हो सकत.
अइसन कबीर के आज के घोर अराजकता के युग में बहुते महत्व बा. एकरा से इनकार नइखे कइल जा सकत. आज के युग के आडंबर के बतावत उनकर एह पंक्ति के देखीं-
जो नर बकरी खात है, ताको कौन हवाल
पर अब नर ही नर को खात है, बुरा धरती का हाल !

अउर इहे वजह बा कि आज छव सौ बरिस से तमाम आंदोलन के नायक बन के कबीर खड़ा बाडऩ. अरुण कमल के शब्दन में, ''कबीर के कविता हमार आह्वïान करेले कि उठ एकरा बदल. ई खाली संत के वाणी नइखे, कबीर सामूहिक कर्म के आह्वïान करेले. एकर आह्वïान ऊ आपन पंक्ति में कइलहूं बाड़े- 'कहत कबीर सुनो भई साधो.
आज के युग में कबीर के प्रासंगिकता के देखत एह बात के शिद्दत से महसूस कइल जात रहे कि कबीर के विचार के देश आ दुनिया में फइलावल जाव. कबीर के जाने-माने वाला हर लोग के भीतर एह बात के लेके एगो उद्वेलन रहे. भारत में रहे वाला एक करोड़ से जादे कबीरपंथी अउर दुनिया भर में फइलल कबीर के भक्तन के भीतरो एकरा लेके बेचैनी रहे. एकरे मद्देनजर कबीर विचारधारा प आधारित एगो सैटेलाइट टेलीविजन चैनल शुरू होखे जा रहल बा. कबीर पंथ के आगे बढ़ावे वाला वाराणसी के लहरतारा स्थित कबीर मंदिर मूलगढ़ी अब संत कबीर के विचारन के आम आदमी तक पहुंचावे के तैयारी क रहल बा. उनका विचार प आधारित टीवी चैनल लावे जा रहल बा. मूलगढ़ी के प्रमुख आचार्य विवेक दास बतइले, ''हमनी के सेटेलाइट चैनल शुरू करे जा रहल बानी जा. एकरा खातिर दिल्ली के मदनगीर स्थित कबीर भवन में अत्याधुनिक स्टूडियो के निर्माण चल रहल बा, जवन आखिरी दौर में बा.
ऊ कहले, ''हमनी के उद्देश्य संत कबीर के वैश्विक भाइचारा के संदेश के दुनियाभर के लोगन तक पहुंचावल बा. ऊ भरोसा जतइले, ''कबीर के अगिला जयंती तक एह चैनल के ऑन एयर क दीहल जाई. चैनल के नाम अबहीं तय नइखे भइल. ई चैनल पूरा तरह से कबीर दर्शन प आधारित होई.
एतने ना कबीर के विचारधारा के फइलावे खातिर मीडिया के अन्य माध्यमो के सहयोग लीहल लीहल जा रहल बा। अबकी कबीर जयंती के अवसर प उनका प बनल चार गो फिलिम कैलिफोर्निया के स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में कबीर उत्सव के दौरान देखावल जा रहल बा. कबीर के दर्शन प आधारित फिलिम बनावे वाली चलो हमारे देस नाम फिलिम के निर्देशिका शबनम विरमानी आपन फिलिम के माध्यम से दुनिया भर में कबीर के विचार फइला रहल बाड़ी. एगो बातचीत में ऊ कहली, ''हमहीं एगो नइखीं, जवन देश-दुनिया में कबीर के विचारधारा के आगे बढ़ा रहल बानी. हमरा जइसन कई लोग एकरा में लागल बा. सिनेमा एगो माध्यम त बड़ले बा, बाकिर मालवा के दलित समाज के प्रहलाद सिंह टिपनया उत्तर भारत में कबीर के आवाज लोगन तक पहुंचा रहल बाडऩ, ऊ जादे बड़ काम बा. स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में प्रोफे सर लिंडा हेसो कबीर में लीन बाड़ी.

कबीर के खोज में निकलल फिलिम निर्देशिका विरमानी लिंडा हेसो के एह यात्रा के अहम कड़ी मानेली. उनकर वाराणसी में गुजरल दिन आ स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में आज के काम, दूनों कबीर से जुड़ल बा.
बाकिर कवनो आदमी संगे सबसे बड़ विसंगति ई होला कि ऊ जवन चीज के जिनगी भर विरोध कइलस ओकरे से ओकरा जोड़ दीहल जाव. कबीर जीवन भर धर्म आ जाति के विरोध में खड़ा रहले, ऊ कहले-
पाहन पूजे हरि मिले तो मैं पूजूं पहाड़
ताते वह चाकी भली पीस खस संसार
कांकर पाथर जोरि के मसजिद लेई चुनाय
ता चढि़ मुल्ला बांग दे बहिराहुआ खोदाय

या फेर उनकर एह दोहा के देखीं-
मसजिद भीतर मुल्ला पुकारै,
क्या जाने है तेरा साहब कैसा है ?
चिंऊँटी के पग नेवर बाजे,
सो भी साहब सुनता है
पंडित होय के आसन मारै
लंबी माला जपता है
अन्तर तेरे कपट कतरनी
सो भी साहब लखता है

कबीर जीवन भर धर्म के विरोध कइले, बाकिर उनकर पूजा शुरू हो गइल. उनकर अनुयायी उनका भगवान बना देले. उनकर मंदिर बन गइल. आज हमनी के उनकर साहित्य के भुला के , उनकर पोंगापंथ के खिलाफ आग उगलत शब्दन के उपेक्षा क के उनके भगवान बना देले बानी जा. ओइसहीं एह पंक्ति के देखीं-
पूरब जनम हम ब्राह्मïण होते, वोछे करम तप हींना
रामदेव की सेवा चूका, पकरि जुलाहा कीन्हां

याने ऊ आपन पूरा जीवन जात-पांत के विरोध में लगा देले अउर हमनी के कबीर के साहित्य अउर उनकर दर्शन प बात करे से जादे एह बात के संधान करे में लागल बानी जा कि ऊ जुलाहा रहन कि ना, ऊ मुसलमान रहन कि हिंदू. एकरा से बड़ विसंगति कबीर के साथे अउर कवनो दूसर नइखे हो सकत. कबीर के एह जयंती प उनका सबसे बड़ श्रद्धांजलि इहे होई कि-
माया महाठगिनी के हम जानी
तिरगुन फांस लिए कर डोलै बोलै मधुर वाणी

माया महाठगिनी के मोह से निकल के हमनी के कबीर के एगो कविए-दार्शनिक रहे दी जां, उनका भगवान ना बनाईं जा.