मंगलवार, 14 अगस्त 2012


भोजपुरी को मिले अल्पसंख्यक भाषा का दर्जा

 

ओंकारेश्वर पांडेय | Issue Dated: जून 24, 2012
 
किसी भाषा को अल्पसंख्यक भाषा का दर्जा देने के लिए कौन सी बुनियादी विशेषताएं होनी चाहिए. भोजपुरी को किन शर्तों और बुनियादी विशेषताओं के आधार पर अल्पसंख्यक भाषा का दर्जा दिया जा सकता है, बता रहे हैं ओंकारेश्वर पांडेय...

'हम रउआ सभे के भावना समझत बानी'
केंद्रीय गृहमंत्री पी. चिदंबरम ने संसद में यही कहकर भोजपुरी को आगामी मॉनसून सत्र में मान्यता देने का वायदा किया है
हमेशा अंग्रेजी बोलने वाले तमिलभाषी केंद्रीय गृहमंत्री पलानियपप्न चिदंबरम ने उस दिन संसद में भोजपुरी बोलकर देश और दुनिया के करोड़ों भोजपुरियों का दिल जीत लिया. 17 मई को संसद में जब भोजपुरी को 8वीं अनुसूची में शामिल करने की मांग भोजपुरिया सांसद जोरदार तरीके से उठा रहे थे, तभी गृहमंत्री पी. चिदंबरम ने सबको आश्वस्त करते हुए कहा, 'हम रउआ सभे के भावना समझत बानी'. भोजपुरी को मान्यता देने का वादा तो संसद में पहले भी कई बार किया जा चुका है, पर इस बार चिदंबरम ने साफ तौर पर आश्वासन दिया है कि संसद के आगामी मानसून सत्र में इस बारे में कोई घोषणा की जाएगी. भोजपुरीभाषी लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार समेत समूचे सदन ने मेजें थपथपाकर गृहमंत्री चिदंबरम के इस बयान का स्वागत किया. मगर क्या आठवीं अनुसूची में शामिल हो जाने भर से भोजपुरी का भला हो जाएगा?  नहीं.  चिदंबरम की घोषणा के कुछ दिन बाद ही दुनियाभर में भोजपुरी की एकमात्र नियमित राष्ट्रीय समाचार पत्रिका द संडे इंडियन की पहल पर भोजपुरी एसोसिएशन ऑफ इंडिया, भोजपुरी समाज तथा पूर्वांचल एकता मंच से जुड़े संपादक-बुद्धिजीवियों का एक प्रतिनिधिमंडल केंद्रीय गृहमंत्री चिदंबरम से उनके नॉर्थ ब्लॉक स्थित कार्यालय में मिला. द संडे इंडियन  ने गृहमंत्री को भोजपुरी के एक हजार साल के सफर पर एक रिपोर्ट सौंपी और साथ ही उन्हें चार पृष्ठों का एक ज्ञापन देकर भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने के साथ ही भोजपुरी समेत आठवीं अनुसूची की सभी भाषाओं को अल्पसंख्यक भाषा का दर्जा देने की मांग भी की.
इस प्रतिनिधिमंडल में द संडे इंडियन के संपादकों के साथ यूएन ग्लोबल कॉम्पैक्ट के इंडिया हेड पूरन पांडेय, भोजपुरी समाज के अध्यक्ष अजीत दूबे और पूर्वांचल एकता मंच के शिवजी सिंह शामिल थे. भोजपुरी को अल्पसंख्यक भाषा का दर्जा? यह सुनकर कई लोग चौंक उठे. लेकिन अनेक लोगों ने द संडे इंडियन भोजपुरी की इस मांग को भोजपुरी समाज को नई दिशा देने वाला एक क्रांतिकारी विचार बताते हुए इसका समर्थन और सराहना की. इसमें सबसे अहम नाम श्री सीताकांत महापात्र का है, जिनकी अध्यक्षता में केंद्र सरकार ने उस कमेटी का गठन किया था, जिसे भोजपुरी समेत कुल 38 भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने पर अपनी सिफारिश देनी थी. श्री महापात्र ने कहा कि 'मैं इसका पुरजोर समर्थन करता हूं. यह मुद्दा देश के सभी नागरिकों से जुड़ा है और राजभाषा से भी. क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने से राजभाषा भी मजबूत होगी.'

दिल्ली स्टेट बार काउंसिल के सचिव श्री मुरारी तिवारी ने भोजपुरी को अल्पसंख्यक भाषा बनाने की मांग का समर्थन करते हुए कहा कि 'यह पूरी तरह संविधान सम्मत और न्याय सम्मत है. भोजपुरी को अल्पसंख्यक भाषा घोषित करके इसके विकास पर जोर देना होगा. अल्पसंख्यक भाषा बनाने से भोजपुरी माटी के लाखों युवाओं और महिलाओं के लिए रोजगार के दरवाजे खुल जाएंगे.' लेकिन जेएनयू के प्रोफेसर डॉ. अजय दूबे ने जानना चाहा कि किसी भी भाषा को अल्पसंख्यक दर्जा देने की बुनियादी शर्तें क्या हैं और उस नजरिए से भोजपुरी कहां खड़ी होती है?
रंगनाथ मिश्रा आयोग ने किसी भी भाषा को अल्पसंख्यक दर्जा देने के लिए उसमें तीन बुनियादी विशेषताओं का होना जरूरी बताया है. ये हैं-संख्यात्मक हीनता, गैर प्रमुखता की स्थिति और अपनी अलग पहचान. यही शर्तें संयुक्त राष्ट्र चार्टर में भी हैं. भोजपुरीभाषी इन तीनों शर्तों को पूरा करते हैं. वे देश के किसी भी राज्य में बहुसंख्यक नहीं हैं. किसी एक राज्य तक वे सीमित भी नहीं हैं. देश के तमाम महानगरों से लेकर लगभग सभी राज्यों और दुनिया के दर्जनों देशों में भोजपुरीभाषी समाज की मौजूदगी सर्वविदित है. साथ ही देश में वे कहीं भी प्रमुखता की स्थिति में भी नहीं हैं. मॉरीशस, त्रिनिडाड आदि में जरूर हैं, पर अपने देश में नहीं. और तीसरी बात उनकी अपनी एक अलग सांस्कृतिक पहचान है, हजारों साल पुरानी.

भोजपुरियों की अपनी एक खास भाषा है और लिपि भी. पूर्णत: वैज्ञानिक, व्यावहारिक और लोकप्रिय लिपि कैथी. वही कैथी जो आज गुजरात की आधिकारिक लिपि है. जो अंग्रेजों के जमाने में युनाइटेड प्रोविंस ऑफ यूपी एंड बिहार की आधिकारिक लिपि थी. जिसे हटाकर देवनागरी को लाया गया तो साल भर बाद ही अंग्रेजी हुकुमत ने यह कहकर पुन: कैथी को लागू किया कि देवनागरी लिपि बहुत प्रचलित नहीं है. आज भोजपुरी भी देवनागरी लिपि में लिखी जाती है. पर बिहार, यूपी में हजारों की संख्या में मौजूद भू-आलेख और अन्य सरकारी दस्तावेज उस जमाने में इस लिपि की लोकप्रियता के प्रमाण हैं. मणिपुर के मैतेयी समुदाय के लोगों ने सैकड़ों साल बाद अपनी खोयी लिपि 'मैतेलोन' को खोज निकाला और उसे पुनर्जीवित भी कर दिया. भोजपुरी समाज दिल्ली के अध्यक्ष अजीत दूबे इससे सहमति जताते हुए कहते हैं 'भोजपुरिया भी ये कर सकते हैं. भोजपुरी की अपनी भाषा है और लिपि भी. इसका साहित्य भी है और व्याकरण भी.' पूर्वांचल एकता मंच के अध्यक्ष शिवजी सिंह ने कहा कि भोजपुरी संगीत और सिनेमा की लोकप्रियता इसकी खास पहचान का ऐसा शंखनाद है, जिसकी आवाज पूरी दुनिया में सुनाई देती है. भोजपुरी समाज का खानपान और जन्म से लेकर मृत्यु तक के अपने खास रीति-रिवाज व परंपराएं भी इसे एक अलग पहचान देते हैं.

भोजपुरी अकादमी बिहार के अध्यक्ष डॉ. रविकांत दुबे के अनुसार आठवीं अनुसूची में शामिल होने के बाद इसे अल्‍पसंख्यक भाषा का दर्जा निश्चित रूप से मिलना चाहिए. देश में भोजपुरियों की संख्‍या करीब 20 करोड़ है, लेकिन कई राज्‍यों में भोजपुरी निश्चित रूप से अल्‍पसंख्यक हैं.  सन 1992 में आम सहमति से अपनाए गए अपने एक घोषणा पत्र में संयुक्त राष्ट्र ने साफ तौर पर राष्ट्रीय या जातीय, सांस्कृतिक, धार्मिक और भाषाई पहचान के आधार पर अल्पसंख्यकों को संदर्भित किया है. न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्रा जिस आयोग के अध्यक्ष थे, उसका नाम ही है- धार्मिक एवं भाषाई अल्पसंख्यक आयोग. वे अपनी रिपोर्ट में कहते हैं-'हालांकि भाषाई अल्पसंख्यक विशेष रूप से परिभाषित नहीं है, लेकिन संविधान के कई प्रावधान अल्पसंख्यकों के आवश्यक तत्व का संकेत करते हैं. संविधान के अनुच्छेद 30 के अनुसार सभी अल्पसंख्यकों, वे चाहे किसी भी धर्म या भाषा पर आधारित हों, को अपनी पसंद के शैक्षिक संस्थान स्थापित करने और चलाने का अधिकार होगा'.
संविधान के अनुच्छेद 29 और 30 के अलावा भाषाई अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा का प्रावधान संविधान की धारा 345, 346 और 347 में भी किया गया है. राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिशों के बाद 1956 में राज्यों का पुनर्गठन भाषाई आधार पर हुआ और फिर संविधान में अनुच्छेद 350 ए और 350 बी को शामिल कर अल्पसंख्यक छात्रों को एक पर्याप्त संख्या में उपलब्ध होने पर प्राथमिक स्कूलों में उनकी मातृभाषा में शिक्षा के अधिकार को संवैधानिक मान्यता दी गई.
सुप्रीम कोर्ट के कई फैसले धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों की विशेष विशेषताओं को व्याख्यायित करते हैं. डीएवी कॉलेज आदि बनाम पंजाब राज्य और अन्य (एससीआर 688, आकाशवाणी 1971 एससी 1737 (5 मई 1971)) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा- 'भारतीय संविधान के अनुच्छेद 30 (1) के तहत भाषाई अल्पसंख्यक वह हैं, जिनकी कम से कम अपनी एक अलग बोली जाने वाली भाषा हो, आवश्यक नहीं है कि उस भाषा की कोई अलग लिपि हो.' टीए पाई फाउंडेशन और अन्य बनाम कर्नाटक राज्य के मामले में माननीय न्यायालय ने स्पष्ट किया कि 'भाषाई और धार्मिक दोनों तरह के अल्पसंख्यक संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत अभिव्यक्त शब्द 'अल्पसंख्यक' में समाहित हैं'. चूंकि भारत में राज्यों का पुनर्गठन भाषाई आधार पर किया गया, इसलिए भाषाई अल्पसंख्यकों का निर्धारण हेतु भी इकाई राज्य होगा समूचा भारत नहीं.

भोजपुरी समाज 'भाषाई अल्पसंख्यक' को इसलिए मांग रहा है क्योंकि यह अपने आप लागू नहीं हो जाता. एक भाषा के समुदाय को 'भाषाई अल्पसंख्यक' घोषित करने के लिए आधिकारिक तौर पर या सक्षम प्राधिकारी द्वारा उसे मान्यता प्राप्त अल्पसंख्यक भाषा के रूप में घोषित किया जाना जरूरी होता है. वरिष्ठ भोजपुरी फिल्मकार और टीवी पर्सनालिटी डॉ. राघवेश अस्‍थाना कहते हैं कि भोजपुरी को अल्‍पसंख्‍यक भाषा का दर्जा देने से इसका प्रचार-प्रसार भी तेजी से होगा और दूसरी राज्‍य सरकारें भी इसे गंभीरता से लेंगी. गौरतलब है कि राज्यों का राजभाषा अधिनियम एक भाषा को राजभाषा के रूप में और अन्य भाषाओं को अल्पसंख्यक भाषा के रूप में मान्यता देता है. प्रसिद्ध भाषाविद् बी मल्लिकार्जुन ने अपने एक आलेख में भारत में भाषाई अल्पसंख्यकों के तीन अलग प्रकार बताए हैं:
1. भाषा की दृष्टि से अल्पसंख्यक वर्ग
2.आदिवासी संबद्धता के साथ भाषाई अल्पसंख्यक
3. धार्मिक मान्यता के साथ भाषाई अल्पसंख्यक

धर्मनिरपेक्ष बहुधार्मिक भारत में धार्मिक अल्पसंख्यक तो राष्ट्रीय स्तर पर घोषित हैं. पर बहुभाषी भारत में भाषाई अल्पसंख्यकों की पहचान और घोषणा राज्यों के स्तर पर छोड़ दी गई है. देश में घोषित पांच धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय हैं. मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध और पारसी. जैन समुदाय इसमें शामिल होने के लिए लंबे समय से संघर्ष कर रहा है. पांच घोषित धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों में से मुसलमानों की भाषा उर्दू के लिए सरकार ने समुचित प्रावधान किए हैं. सच्चर कमेटी की सिफारिशों के अनुरूप भी उर्दू भाषा को बढ़ावा देने के लिए करोड़ों रुपये बाकायदा योजना बना कर खर्च किए जा रहे हैं. बिल्कुल होना चाहिए लेकिन इसी तरह अन्य भारतीय भाषाओं का विकास भी क्यों न हो. वरिष्ठ भोजपुरी साहित्यकार डॉ. जौहर शफियाबादी ने भोजपुरी समेत आठवीं अनुसूची में शामिल सभी भाषाओं को राष्ट्रीय अल्पसंख्यक भाषाएं घोषित करने का समर्थन करते हुए कहा कि इससे तमाम भारतीय भाषाओं के विकास और आपसी समन्वय का रास्ता खुलेगा और राष्ट्रीय एकता को मजबूती मिलेगी. 
(१. रघुवंश प्रसाद सिंह, सांसद वैशाली, बिहार
२. उमाशंकर सिंह, सांसद, महाराजगंज, बिहार
३. एडवोकेट मुरारी तिवारी, सचिव, बार एसो., दिल्ली    ४. जगदंबिका पाल, सांसद, डुमरियागंज, उत्तर प्रदेश
५. प्रो. मंगलमूर्ति, वरिष्ठ हिंदी साहित्यकार
६. प्रो. आर.के. दूबे, अध्यक्ष, बिहार भोजपुरी अकादमी )

हालांकि सरकार चार अन्य घोषित धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों की भाषा के विकास के प्रति उदासीन है. अल्पसंख्यक ईसाइयों की भाषा अंग्रेजी और अल्पसंख्यक सिखों की भाषा पंजाबी को इस आधार पर अल्पसंख्यक भाषा नहीं माना गया, क्योंकि वे कम से कम किसी एक राज्य में बहुसंख्यक हैं लेकिन उर्दू को जम्मू-कश्मीर में बहुसंख्यक भाषा होने पर भी इससे अलग कर देशभर में अल्पसंख्यक भाषा के रूप में सरकारी संरक्षण और प्रोत्साहन प्राप्त है. क्या यह अल्पसंख्यक भाषाओं को लेकर सरकार की नीति पर सवाल नहीं खड़े करता? द पीपुल्स लिंगुइस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया, बड़ौदा के संस्थापक अध्यक्ष प्रोफेसर जीएन देवी कहते हैं, 'खुशी है कि भोजपुरी का दायरा बढ़ रहा है.
आज यह मुख्यधारा की फिल्मों और गीत-संगीत को टक्कर दे रही है. इट विल बी ए मेजर सेंट्रल लैंग्वेज ऑफ फ्यूचर ऑफ इंडिया. भोजपुरी को अल्पसंख्यक भाषा की श्रेणी में शामिल कर लिया जाए तो खुशी होगी. पर यह ज्यादा संभव नहीं लगता. आठवीं अनुसूची में शामिल होना ज्यादा संभव होगा क्योंकि अल्पसंख्यक भाषा की व्याख्या कहीं भी साफ नहीं हैं'. हिंदीभाषी समाज का एक तबका चिंतित है कि भोजपुरी को मान्यता मिलने से हिंदी की संख्या कम हो जाएगी. इसी नाते वे भीतरखाने भोजपुरी का विरोध करते रहे हैं. जबकि भोजपुरी समाज ने हिंदी का कभी विरोध नहीं किया. बल्कि हिंदी को आन कहकर उसके प्रति अपना पूरा सम्मान जताया है.
हिंदी हमरी आन ह अउर भोजपुरी पहिचान ह. बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में भोजपुरी अध्ययन केंद्र के संयोजक सदानंद शाही कहते हैं, 'भोजपुरी की वजह से हिंदी की संख्या कम नहीं होगी क्योंकि भोजपुरी के लोग जनगणना में पहले राष्ट्रभाषा हिंदी और फिर मातृभाषा भोजपुरी लिखवाने के पक्षधर हैं. मैथिली, छत्तीसगढ़ी, झारखंडी लोग भी इसी तर्ज पर हिंदी भाषा को कमजोर करने की बजाए उसे मजबूत ही कर रहे हैं.' वरिष्ठ हिंदी साहित्यकार प्रो. मंगलमूर्ति मानते हैं कि सरकार की पहल सकारात्‍मक है, सरकार जानती है कि अगर भोजपुरिया लोगों की चिरलंबित मांग पूरा कर देने पर 2014 के लोकसभा चुनाव में उनको फायदा मिलेगा. जहां तक अल्‍पसंख्‍यक भाषा का दर्जा देने की बात है, तो अवश्‍य देना चाहिए. हालांकि यह केंद्र और राज्‍य दोनों सरकारों पर निर्भर है, अगर केंद्र ना भी दे तो राज्‍य सरकारें अल्‍पसंख्यक भाषा का दर्जा दे सकती है.

पुरजोर सर्मथन करता हूं
वजाहत हबीबुल्लाह, 
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष
भोजपुरी भाषा को भाषाई अल्पसंख्यक घोषित करने के सवाल पर राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष वजाहत हबीबुल्लाह से बातचीत

भोजपुरी को राष्ट्रीय अल्पसंख्यक भाषा का दर्जा देने पर आपका क्या मत है? 
यह विषय अल्पसंख्यक आयोग के दायरे में नहीं आता. आयोग केवल धार्मिक अल्पसंख्यकों के मामले देखता है. भाषाई अल्पसंख्यक इसके दायरे में नहीं आते.
देश में भाषाई अल्पसंख्यकों की समस्या पर आपके क्या विचार हैं?
भाषाई अल्पसंख्यक देश में तमाम तरह की समस्याओं का सामना कर रहे हैं. वे राज्य के स्तर पर अल्पसंख्यक नहीं हैं, यहीं से समस्या शुरू होती है. भाषाई अल्पसंख्यकता को परिभाषित करना भी एक समस्या है. एक प्रदेश में कई भाषाएं हैं. जैसे उत्तर प्रदेश जहां भोजपुरी, अवधी और हिंदी बोली जाती है.
भोजपुरी किसी भी राज्य में बहुसंख्यक नहीं है और समूचे देश में फैली है. क्या भोजपुरी को अल्पसंख्यक भाषा का दर्जा मिलना चाहिए?
सबसे पहले हमें भाषाई अल्पसंख्यकता को परिभाषित करने की आवश्यकता है.

केंद्र सरकार ले ठोस फैसले
सीताकांत महापात्रा, 

अध्यक्ष, भोजपुरी-राजस्थानी सिफारिश समिति
भोजपुरी व राजस्थानी समेत अन्य भाषाओं को आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए केंद्र सरकार ने महापात्रा कमेटी का गठन किया था. अध्यक्ष सीताकांत महापात्रा से ओंकारेश्वर पांडेय की बातचीत
गृहमंत्री पी चिदंबरम ने भोजपुरी को 8वीं अनुसूची में शामिल करने का आश्वासन दिया है. आपकी प्रतिक्रिया. 
अच्छा, मुझे नहीं मालूम.
सिफारिश आपकी कमेटी ने ही की थी?
हमने 2004 में ही रिपोर्ट सरकार को सौंप दी थी. मेरे पास तो उसकी प्रति भी नहीं है.
भोजपुरी को 8वीं अनुसूची में शामिल करने से क्या-क्या
लाभ होंगे?

कुछ खास नहीं. आठवीं अनुसूची में शामिल करना मैटर ऑफ प्रेस्टीज ज्यादा है. वैसे इसमें शामिल होने से यूपीएससी की परीक्षाओं में बैठने और करेंसी पर उस भाषा में भी लिखने का प्रावधान है. यह मुद्दा भावनात्मक प्रतिष्ठा से जरूर जुड़ा है लेकिन सभी केंद्रीय कानूनों का इन भाषाओ में अनुवाद
होना चाहिए.
भोजपुरी व 8वीं अनुसूची में शामिल सभी भाषाओं को राष्ट्रीय अल्पसंख्यक भाषाएं घोषित करने की मांग हो रही है? 
यह जरूरी है. मैं इसका पुरजोर समर्थन करता हूं. यह मुद्दा देश के सभी नागरिकों से जुड़ा है और राजभाषा से भी. क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने से राजभाषा भी मजबूत होगी. देश के कई भागों में भाषा का सवाल जटिल होता जा रहा है. कन्नड़ एवं मराठी का मुद्दा है. मणिपुरी और नगा लोग लड़ रहे हैं. भोजपुरी और मराठी का मामला भी उठता रहा है. इसलिए ये अहम समय है कि सरकार क्षेत्रीय भाषाओं के संरक्षण के लिए कोई ठोस निर्णय करे.
भोजपुरी के बारे में क्या विचार हैं ?
मैंने भोजपुरी कविताएं और पुराने गीत पढ़े हैं. मॉरीशस गया तो वहां भी इसके प्रति रूचि देखने को मिली. भोजपुरी पर काफी लोगों ने काम किया है. 

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