सोमवार, 22 सितंबर 2008

मॉरीशस के बाद अब नेपालो में
मिली भोजपुरी भाषा के मान्यता


जो भी भाषा मधेश में बोली जाती है, चाहे वो मैथिली हो या भोजपुरी, अवधी या हिंदी-उन सबको पर्याप्त सम्मान मिलना ही चाहिए. यह हमारी भाषा है. यह केवल हिंदुस्तान की भाषा नहीं है. भाषा की कोई सीमा नहीं होती है. निश्चित तौर पर यह हमारी लड़ाई है. हम चाहते हैं कि नेपाली के साथ हिन्दी भी वहां रहे. जब हिंदी, मैथिली का विकास होगा तो भोजपुरी का विकास भी होगा ही. हम इन भाषाओं को नेपाल में मान्यता दिलाने की कोशिश करेंगे.....ई कहनाम रहे नेपाल के विदेश मंत्री उपेन्द्र यादव के. एकरा से ई उमेद भइल बा कि मॉरीशस के बाद अब नेपालो में एह भाषा के मान्यता मिल जाई. आपन महान देश भारत में कब मिली ई पता नइखे.....

लोकतंत्र के गठन के बाद बने नेपाल के प्रधानमंत्री के पहिला भारत यात्रा के मौका प नेपाल के उप प्रधानमंत्री आ विदेशमंत्री उपेन्द्र यादव से ओंकारेश्वर पांडेय के ई खास बातचीत समाचार सप्ताहिक द संडे इंडियन में 14 भाषा में छपल बा. पढ़ीं ई खास इंटरभ्यू-

प्र.- नेपाल के प्रधानमंत्री की यह पहली भारत यात्रा है. यात्रा ओवरऑल कैसी रही. इसमें क्या बातचीत हुई. इस दौरे से क्या लगता है आपको?

- नेपाल में संघीय लोकतंत्र बनने के बाद प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड की चीन के बाद भारत की यह दूसरी यात्रा है. यह यात्रा सद्भावना यात्रा है. हमें गुडविल क्रिएट करना, आपसी विश्वास को बढ़ाना है. नेपाल में राजशाही खत्म होने के बाद लोकतंत्र की स्थापना हुई है.और उसके बाद बनी है सरकार. भारत और नेपाल के बीच मित्रता, आपसी सद्भाव और सहयोग को बढ़ाने और नया दिशा देने की यात्रा है.

प्र.- परंपरा यह रही है कि नेपाल के जब शीर्ष नेता निकलते थे, तो पहले भारत की यात्रा करते थे. यह पहली बार हुआ, जब वे पहले चीन गये और उस बाद भारत आये. इस पर काफी बातें भी हुईं. आप कुछ संक्षेप में कहना चाहेंगे?

-पहली बात तो यह कि चीन यात्रा तो उनके ओलंपिक समापन समारोह में भाग लेने के लिए था. और दूसरी बात यह है कि प्रचलन रहा है भारत आने का लेकिन ऐसा नहीं रहा कि दूसरे जगह नहीं जायें.

प्र.- भारत उन देशों में है, जो यह मानता है कि नेपाल से हमारे इतने पुराने, इतने प्रगाढ़ संबंध हैं कि सबसे पहले कोई नेता निकलता है तो वह यहां आना पसंद करता है. तो क्या इस नीति में कोई बदलाव दिखता है? क्या आप भारत को भी दूसरे देशों की तरह देखने लगे हैं या पहले की तरह उसका दर्जा बरकरार है.?

-नहीं-नहीं, देखिए! हमारे सभी देशों से अच्छे संबंध हैं. चीन से भी अच्छे संबंध है. वो भी पड़ोसी हैं उत्तर में और भारत दक्षिण में. दोनों असल पड़ोसी हैं और दोनों मित्र हैं. दोनों के साथ हमारे कूटनीतिज्ञ और राजनैतिक संबंध हैं. लेकिन भारत के साथ कुछ विशेष है. जो किसी देश के साथ नहीं है. और विशेष इस मायने में कि यह यूनिक है. यह संस्कृतियों का संबंध है. कहा जाय तो यह संबंध ही नहीं है, यह रिश्तेदारी भी है. यह किसी और दूसरे चीजों से बहुत ऊपर है. यह पारिवारिक, भावनात्मक, धार्मिक, संस्कृतियों और बेटी-रोटी का संबंध है, न जाने कितने-कितने तरह का संबंध है. इसलिए इस संबंध के साथ मै जहां भी जाता हूं तो यही कहता हूं कि भारत के साथ हमारा जो रिश्ता है, उसकी तुलना दूसरे देश के साथ नहीं की जा सकती है.

प्र.-राजशाही के समय के भारत के साथ नेपाल के संबंध और अब लोकशाही में भारत के साथ संबंध. क्या आप कोई नयापन या भिन्नता देखते हैं?

-भारत के साथ नेपाल का जो राजशाही के समय संबंध था. उससे बेहतर संबंध दोनों देशो में लोकतांत्रिक व्यवस्था में होगा.

प्र-यह नया बेहतर संबंध किस तरह का होगा? माओवादी सरकार किस प्रकार का संबंध चाहती है भारत से?

-अब देखिए! दोनों देशों की आवश्यकता है शांति स्थापना. दूसरा है, बॉर्डर पर आपराधिक गतिविधियां. सीमा पार आंतकवादी गतिविधियों के साथ-साथ भारत-नेपाल सीमा पर तस्करी तथा कई तरह की अन्य समस्याएं भी हैं, जैसे अपराधी इधर से भाग कर उधर जाते हैं. यह सब दोनों देशों की शांति और सुरक्षा में बाधा डाल रही है. इसलिए हम दोनो देशों को एक साथ मिल कर लड़ना चाहिए. दूसरा-आर्थिक प्रगति के लिए भारत और नेपाल को मिलकर आपसी समझ और सहयोग के साथ आगे बढ़ने की आवश्यकता है. दोनो देशों का आर्थिक विकास है. नेपाल काफी पीछे रह गया है, उसे भी आगे लाया जाय. वहां भी संसाधन काफी हैं. जैसे हाइड्रो पावर है. टूरिज्म है, कृषि है. उसके विकास से भारतीय जनता को भी प्रत्यक्ष लाभ होगा, नेपाल की जनता तो होगी ही. यह संबंध आने वाले दिन में एक दूसरे के साथ और भी ज्यादा निकट होने की संभावना है.

प्र-आपने आतंकवाद की चर्चा की. पिछले दिनों देखने को मिला कि भारत में जो आतंकवादी गतिविधियां चल रही है, खास तौर से आईएसआई की गतिविधियां, उनमें नेपाल की जमीन का इस्तेमाल किया जाता है. आने जाने में भी नेपाल के रास्ते का इस्तेमाल किया गया....

-यह कहना कि यह सारा काम नेपाल से ही होता है, ऐसा नहीं है. यहां भी होता है. भारत तो पूरी दुनिया के लोगों के ठहरने की जगह रहा है. आज से नहीं इतिहास ज़ल से चाहे वे मुगल आये हों या तुर्क आये हों, चाहे वो अरबी आये हों या पुर्तगाली आये हों, चाहे अंग्रेज आये हों या फ्रांसीसी आये हों. चाहे पड़ोस का कोई भी आया हो. सभी की शरणस्थली भारत भूमि आज से नहीं हजारों हजार साल से रहा है. यहां सब लोग रहते हैं. खराब लोग भी रहते है, अच्छे लोग भी रहते हैं. इसलिए मै यह कहता हूं कि नेपाल आतंकवादियों का अड्डा है, बहुत बड़ा नेटवर्क है और वहीं से सारा कुछ चलता है. यह कहना नेपाल के लिए उचित नहीं होगा. यहां भी समस्याएं है, वहां भी समस्याएं है.

प्र- क्या आपको लगता है. दोनो देशों को इस मसले पर आपस में मिलकर काम करना चाहिए?

-मिलकर काम करें तो दोनों की जीत होगी.

प्र.- भारत-नेपाल सीमा लगभग खुली हुई है. इस बार के दौरे में आपके प्रधानमंत्री प्रचंड ने हमारे प्रधानमंत्री से कहा है कि 1950 की संधि की दोबारा समीक्षा होनी चाहिए, क्या वह रद्द होनी चाहिए? नेपाल की सरकार संधि को लेकर क्या चाहती है?

-देखिए! नेपाल की जनता और भारत की जनता दोनों चाहते हैं कि यह सीमा खुली रहे. जिससे दोनो देशों के बीच जो बेटी- रोटी का रिश्ता है, वो बना रहे. किसी तरह की दीवार भारत की जनता या नेपाल की जनता पसंद नहीं करती है.

प्र.- क्या 1950 की संधि उसमें दीवार है?

-ऐसा नहीं है. 1950 की संधि मित्रता और भाईचारे की संधि है. उसका ऐतिहासिक महत्व है, लेकिन आज समय तो बहुत बदल चुका है. 1950 और 2008 के बीच गंगा और यमुना दोनों का पानी बहुत बदल चुका है. परिवर्तन आया है. अंतरराष्ट्रीय संबंधों में बदलाव आया है. इसी के अनुकूल दोनो देशों को मिलकर सुधार करना चाहिए. दिशा नकारात्मक नहीं होनी चाहिए. दिशा सकारात्मक होनी चाहिए. उस संधि को और मजबूत करना चाहिए. और ये संबंध और मजबूत करने की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए. दोनों देशों के बीच किसी तरह का कोई कन्फ्यूजन नहीं रहना चाहिए. ओपेन हार्ट होना चाहिए. मित्रता और सहयोग होना चाहिए. किसी समस्या को समय रहते उठाने में भारत को कोई एतराज नहीं है- ऐसा नेपाल का मानना है. इसके लिए भारत भी तैयार है.


प्र.-कोसी की पानी ने बिहार में भारी तबाही मचायी है. जाहिर है, आप यहां भी तबाही है. प्रचंड जी ने उस बांध से संबंधित संधि को लेकर जो बात की है. क्या नेपाल इसे निरस्त करने के पक्ष में है?

देखिए! कोसी नदी नेपाल में खासकर मधेश भाग जहां हम लोग रहते हैं, बहती है. नेपाल का मधेश भाग और बिहार का दुख एक है. जीवन प्रणाली एक है और नदियां भी दोनों को एक ही दुख देती हैं. दोनों देश की जनता और सरकारों को मिलकर रास्ता निकालना चाहिए. ताकि इस दुख देने वाली नदी को दोनों देश की जनता मिलकर आर्थिक प्रगति देने वाली नदी के रूप में परिणत कर दें. ताकि कोसी लाइफ लाइन बन जाय. बस यही हमारी चाह है.

प्र.- सन् 1968 में कोसी पर जो हाईडैम बनाने की बात थी. उसको लेकर अब क्या स्थिति है?

-उसका सर्वे हुआ है. नेपाल सरकार चाहती है कि हाई डैम बनाना है कि नहीं बनाना है. इसके लिए दोनों देशों की तरफ से तकनीकी रूप से अध्ययन होना चाहिए. क्योंकि इस प्रलय के बाद (हम तो इसे प्रलय ही कहेंगे जिसमें 40 लाख लोगों की तबाही हो गई है) यह जरूरी हो जाता है कि हर पहलू पर सोच कर आगे बढ़ा जाय. अध्ययन होना चाहिए. भौगोलिक पक्ष से, जियोलॉजी के पक्ष से और इंजीनियरिंग के पक्ष से भी. दोनों देशों को मिलकर ऐसे विनाश से बचने का स्थायी समाधान करना चाहिए. साथ ही साथ अगर हाईडैम बनेगा तो बिजली निकलेगी. बिजली होगी तो फैक्ट्री चलेगी, रोशनी मिलेगी और सिंचाई होगी. और इन सब से तरक्की होगी. तो इस रास्ते में और इस दिशा में क्यों नहीं प्रयास किया जाय.

प्र.-भारत-नेपाल रिश्तों के बीच विवाद का और कौन सा बिंदु रह गया है?
-हम सब मिलकर पता लगाएं. सीमा समस्या है. ट्रांजिट की समस्या है. सीमाओं में दो जगह विवाद का बिंदु रहा है. खासकर कालापानी और तिस्ता. इन सबको हल कर लेना चाहिए.
इस बारे में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी से बात हुई है, और आगे भी होगी.

प्र.-नेपाल में जब उप-राष्ट्रपति ने हिंदी में शपथ लिया तो इस पर बड़ा बवाल हुआ. मीडिया में भी इसे बहुत उछाला गया. आप मधेश क्षेत्र से आते हैं और नेपाल की आधी आबादी हिंदी बोलती है. क्या जिस देश की आधी आबादी हिंदी बोलती है. उस भाषा को उस देश के संविधान में मान्यता नहीं मिलनी चाहिए?

-इसी की लड़ाई चल रही है. जो भी भाषा मधेश में बोली जाती है, चाहे वो मैथिली हो या भोजपुरी, अवधी या हिंदी-उन सबको पर्याप्त सम्मान मिलना ही चाहिए. यह हमारी भाषा है. यह केवल हिंदुस्तान की भाषा नहीं है. भाषा की कोई सीमा नहीं होती है. निश्चित तौर पर यह हमारी लड़ाई है. हम चाहते हैं कि नेपाली के साथ हिन्दी भी वहां रहे.

प्र.-और भोजपुरी?

-जब हिंदी, मैथिली का विकास होगा तो भोजपुरी का विकास भी होगा ही. हम इन भाषाओं को नेपाल में मान्यता दिलाने की ज़ेशिश करेंगे.

प्र.- अब माओवादियों का संघर्ष सत्ता तक पहुंच चुका है. तो प्रश्न यह उठता है कि जो काडर के लोग इस संघर्ष में शामिल थे, उनकी बंदूंकें अपराधियों के हाथ में न चली जाय, और वे नेपाल की मुख्यधारा से जुड़ें इस लिए आपकी सरकार क्या प्रयास कर रही है?

-बंदूकधारियों को मुख्यधारा में लाया जाय, इसके लिए सरकार प्रयास कर रही है. जब माओवादी सबसे बड़े बंदूकधारी मुख्यधारा में आ सकते हैं, तो बाकी क्यों नहीं?

प्र.- भारत के विभिन्न राज्यों में नक्सलवादी आंदोलन चल रहा है. इनको कहीं ना कहीं नेपाली माओवादियों की सफलता से प्रेरणा मिल रही है. नेपाल की सरकार भारत के इस आंदोलन को किस रूप में देखती है?


-देखिए! भारत का नक्सली आंदोलन, नेपाल में माओवादी आंदोलन को प्ररेणा देने वाला रहा है. प्रचंड जी ने यहां खुद बताया है कि नेपाल में संघर्ष के दौरान उनका 90 प्रतिशत समय भारत में ही बीता है. यहां के जो माओवादी या नक्सलवादी हैं उन्हीं से प्रेरणा मिली है. हथियार और सहयोग दोनों मिला है. मगर आज रास्ते बदल चुके हैं. वहां के माओवादी अब दूसरे रास्ते पर चल चुके हैं.

3 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

i like......

जय प्रकाश मिश्र ने कहा…

जब-जब किसी भाषा और समुदाय पर संकट का बादल छाता है, तब 'विचार' रुपी आन्दोलन की जरुरत होती है. एक आन्दोलन की तरह चल रहे इस ब्लॉग पर आलेख और इंटरव्यू निश्चित हीं "भोजपुरी" भाषा को एक नई दिशा देगा. वैसे तो 'भोजपुरी पत्रकारिता' के इतिहास की चर्चा भविष्य में जब भी होगी, आपके संपादन में निकल रहे "द सन्डे इंडियन" की और आपकी चर्चा जरुर होगी.

Vijaya Bharti ने कहा…

धन्यवाद जयप्रकाश जी.