भोजप्रदेश के गठन का विचार से भोजपुरी भाषा आ समाज के विकास कवन तरेह जुडल बा, एकरा विषय में हिन्दी के प्रतिष्ठित लेखक, आलोचक आ प्राध्यापक कर्मेन्दु शिशिर के लगे ढेर तर्क बाडन सॅ। उनकरा सॅगे बतियावे में एह विचार के ढेर जानल-अनजान पहलू के ज्ञान होखेला। द संडे इंडियन खातिर उनका से अमरनाथ के बातचीत के एगो अंश नीचे दिहल जा रहल बा।
सवाल-भोजपुरी अबहीं सविधान में शामिल नइखे भइल, बाकिर भोजपुरी प्रदेश गठन के मांग उठ गइल। एकर असर का होइ, सारा मामिला गडबड़ा ना जाइ का -
शिशिर- भोजपुरी प्रदेश के नक्शा बनाके ओकर एगो वैचारिक आधार राहुल सांस्कृत्यायन दिहले रहलन। ओह नक्शा आ विचार के सामने लेके गंभीरता से संगठित आंदोलन होखे त, एक ना एक दिन एहू दिशा में कामयाबी मिल सकेला। राजनीति में कवनो चीज असंभव नइखे। बाकिर आज राज्यवार राजनीति के जे सुप्रीमो बा, ऊ आपन इलाका में सहजे उलट- पुलट ना करे दिही। आ कवनो अइसन संगठन नइखे जवन देश-विदेश में बसल लोगन के जोडे, ओकर सहयोग ले आ जबरदस्त आंदोलन के सिलसिला शुरू करे। एह सबके शुरुआत भोजपुरी अस्मिता के पहचान आ आत्मगौरव से ही हो सकेला। अइसन यदि हो जाए त सांस्कृतिक स्तर आ आर्थिक स्तर पर भी भोजपुरी जनपद के समाज आश्चर्यजनक तरीका से समृध्द हो जाई।
सवाल-आठवीं सूची मे शामिल भइला के बादे भाषा के विकास होई, अइसन बा का।
शिशिर- जवन भाषा आठवीं सूची में शामिल रहे आ हाल-फिलहाल जेकरा के शामिल कइल गइल, ओकर विकास केतना भइल बा। एकरा देखला से साफ बा जे आठवीं सूची में शामिल कइल जेतना जरूरी बा़, ओकरा से जादा जरूरी ई बा कि भोजपुरी भाषी लोग पहिले खुद आपन अस्मिता के पहचान करे आ ओकरा के समृध्द करे खातिर विभिन्न क्षेत्रन आ विधन में महत्वपूर्ण काम संभव करे। भोजपुरी के साहित्य में सबसे महत्वपूर्ण ओकर लोकसाहित्य बा। एतना समृध्द शाइदे कवनो लोकभाषा के होखे। लेकिन विधा के मोताबिक होरी-चैती छोड़के़, आज ले ओकर कवनों संग्रह ना भइल। जइसे-कजरी, बिरहा, डोमकच, रोपनी, कटाई आ आउरो अइसन विधा के अलग-अलग संग्रह देखे में नइखे आइल। ओही तरे भिखारी ठाकुर के विदेशिया अगर छोड़ दिहल जाए त अउरु लोकनाट्य या गीतनाट्य के परंपरा पर कवनो कामे नइखे भइल।
सवाल-आठवी सूची आ अलग राज्य भाषा आ समाज का विकास खातिर अनिवार्य बा का
शिशिर-अइसन नइखे। आपन अस्मिता के पहचान कइल जरूरी होखेला। मैथिली के भीत्तिचित्र साहित्य सउसे दुनिया में सम्मानित हो गइल। आ भोजपुरी में एकर शुरुआतो नइखे भइल। आरा में साडी-बाटिक कला में टिकुली पेंटिग आ एही तरह के अउर छापा उद्योग छोट पैमाना पर फलफूल रहल बा। अगर ओकरा केहू ढंग से विकसित करे त ऊ राजस्थान जइसन चुनरी उद्योग के बड़ रुप ले सकेला।
सवाल-अबहीं भोजपुरी के जवन विकास होखता, ओकरा ठीक मानल जाइ का
शिशिर- भोजपुरी संगीत में समझदारी के अभाव आ पूरा समाज के ध्यान ना देहला के कारण एकदम अश्लील संगीत उद्योग विकसित हो गइल बा। धर्म आ यौन के युगलबंदी पूरा भोजपुरी संगीत बाजार के अपना चपेट में ले लिहले बा। अगर कवनों समझदारी से लोकगीतन आ साहित्य में लिखल गइल गीतन के ढंग से चयन करके गंभीर गायकन आ संगीतकारन द्वारा अगर एह उद्योग के विकसित कइल जाए त ई पंजाबी लोकसंगीत जइसन विशाल संगीत उद्योग खड़ा कर सकेला। भोजपुरी के खान-पान में एगो लिटी उद्योग लालूजी के कारण आज बाजार में जबरदस्त पहुंच बनवले बा। लेकिन भोजपुरी जनपदन में कइगो अइसन मिठाई मिलेला, जेकरा के आज के बाजार के ध्यान में रखके ढालल जाव, त बहुत बड़ वर्ग के जीवन-दशा ही बदल जाई। भोजपुरी संस्कृति आ समाज से जुड़ल ई छोट-मोट संकेत में ही कइगो बड़ उद्योग के संभावना बा आ एकरा से भोजपुरी समाज के जीवन-स्तर बदल देवे के कूब्बत बा।
सवाल- एकरा भाषा आ संस्कृति के बाजार मे खडा करि दिहल ना कहल जाई का
शिशिर-कवनो साहित्य आ संस्कृति बाजार से डेराके भागी त ओकर जिअल मुश्किल बा। ओकरा अपने भीतर से अइसन पक्षन के सुनियोजित तरीका से मजबूत कके अपने भरोसे बाजार में ताल ठोकके आवेके पड़ी। अपना खांटीपन के बचावले काफी ना ह। ओकराके नया रुप लेके आज जुधम-जुध करेके पड़ी। भोजपुरी जनपदन में खासकर बिहार के भूई बहुते उपजाऊं ह। अउर एकरा लोगन में बहुत ताकत बा। राजनीति अउर संगठन आ नेतृत्व के दूरदर्शिता से ही ई सब संभव हो सकेला। दूसर कवनो रास्ता नइखे।
भोजपुरी फिलिमन के सउसे संसार में बाजार बा। ओकर एतना अनाड़ी आ भोड़ा तरीका के व्यवसाय फइलल बा कि देख-सुनके केहुके मन भिनभिना जाई। जबले फिलिमन के आधार भोजपुरी साहित्य आ भोजपुरी जनपद से जुड़ल हिन्दी साहित्य पर आधारित कवनो दिमाग वाला आदमी ना जुड़ी तबले ई फरिआए वाला नइखे। कवनो भोजपुरी फिलिम के भाषा तक में खांटीपन नइखे। एह खातिर शुरू में जवन कुछ हम कहले बानी ओकरा के जोड़के विचार करेके चाही।
सवाल-राष्ट्रभाषा हिन्दी के हित में एक समय भोजपुरी वगैरह भाषन के जिकिर छोड दिहल गइल रहे। अब भोजपुरी के एह तरह से विकास अभियान आरंभ कइला के असर का होखी
शिशिर-दुनिया में कवनो एगो भाषा के विकास अगर ईमानदारी आ विवेक से होई त ऊ कवनो दोसर भाषा के नोकसान ना पहुंचाई। उलटे ओकरा से फायदा ही होई। ऊंच शिक्षा में एह भाषन के शामिल कइला से का फाइदा होता, एकरा प त लोग विचार करता लेकिन एह पर विचार नइखे करत कि एकरा से का नोकसान होता। जादातर अइसन भाषा आपन पाठ्यक्रम में संस्कृत आ हिन्दी के सीधे नकल करके शामिल कइले बा। हिन्दी से अलगावे वाला पक्ष पर ओकर जोर नइखे। एह से कुछ लोग एह सुविधा के जादा लाभ उठा लेता। बढ़ावा के नाम पर कापी जांचे वाला एह में एतना जादा नंबर देता कि दोसरा विषय के लइकन सबके गरदन कटा जाता। एह गला काट प्रतियोगिता के समय में एह तरेह के छिनाझपटी के कारण ही एह भाषन के विरोध जबरदस्त बा। एह से तात्कालीक लाभ भले मिले लेकिन ई भाषा एह तरीका से धीरे-धीरे मरि जइहन सँ। काहे से कि पढ़े वाला के मन में ई बात बइठल रही जे बिना कवनो स्तर के भी एकरा में ढेर नंबर मिल जाई। इहे हाल हिन्दी के भी भइल बा।
सवाल- राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी के विरोध एह से बढि ना जाइ का
शिशिर- भारतीय भाषन के बीच के लड़ाई के पीछे स्पष्ट भाषा नीति अउर समझ के अभाव बा। भाषा के समृध्दि खातिर जवन गुण होखे के जाहत रहे, तवनो अवगुण बन गइल बा एह देश में। अंग्रेजी के जहवां आ जेतना प्रयोग होखे के चाहीं, ऊ जरुर होखो लेकिन ओकर बेफांट प्रयोग के पीछे मूल मंशा धन बा। अंग्रेजी पुस्तक व्यवसाय में आ कॉस्मेटिक, शराब भा अउरो अइसन बहुते मामला में अरबों रुपया विदेश जा रहल बा। कुत्ता पर, घोड़ा पर आ बहुत-बहुत तरह के विषयन पर लिखल किताब, बेमतलब के उत्पाद पर विपुल धनराशि अंग्रेजिए के कारण बाहर जा रहल बा।
एह सब पर विचार कइल जाओ आ जहवां से जवना भाषा में ज्ञान आ काम के चीज होखे ऊ जरूर आवे, लेकिन अपना भाषा के समृध्द करे खातिर, धन लुटावे खातिर ना। अगर अइसन होखे त कवनो भारतीय भाषा आपस में ना लडिहन आ अइसन ना होई त अंगरेजी मलाई खाई आ ई सब आपस में जुझबे करिहन सँ।
द संडे इंडियन में छपल इंटरभ्यू
------------------------------------------------
बुधवार, 10 सितंबर 2008
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें