मंगलवार, 27 मई 2008

भोजपुरी भासा के संविधान में सामिल करावे खातिर आंदोलन के जरूरत बा

पढ़ीं भोजपुरी भासा के सवाल प भोजपुरिया समाज के बुद्धिजीवी आ पुरनिया लोगन के का कहनाम बा

प्रो कर्मेन्दु शिशिर के कहनाम बा

भोजपुरी के आठवीं अनुसूची में राखे में केहूके विरोध ना होखे के चाही। भाषा के विस्तार आ भाषा-साहित्य के प्राचीनता में एकर स्थान ऊंचा बा। भोजपुरी के उत्स सरहपाद जइसन सिध्द कवियन में मिलेला। सिध्द कवियन के भाषा में प्राकृत आ अपभ्रंश के अइसन शब्द मिलेलन, जेकर आन कइनगो बोलियन में विकास भइल। बाकिर कबीर विशुध्द रूप से भोजपुरी कवि हऊअन। ऊनकरा परंपरा चलत रहल।

प्राचीनता आ विस्तार में भोजपुरी दुनिया में स्थान राखेला। कठिनाइ सिरिफ एहसे बा जे भोजपुरी के अकादमिक स्वरुप नइखे उभरल। बाकिर बिहार भोजपुरी अकादमी अगर एगो काम कइले बा त 1883 से 1983 के बीच प्रकाशित भोजपुरी ग्रंथन के विवरण तइयार करके प्रकाशित कर दिहले बा। हजारन कमजोरी हो सकेले, बाकिर भोजपुरी साहित्य के इतिहास आ अन्य ग्रंथ लिखाल जा रहल बा। सृजनात्मक साहित्य के सतत प्रवाह चल रहल बा।

(प्रो कर्मेन्दु शिशिर पटना के एगो कालेज में हिन्दी के व्याख्याता आ प्रतिष्ठित लेखक बानी। महापंडित राहुल सांस्कृत्यायन, हजारी प्रसाद द्विवेदी आ केदारनाथ सिंह के परंपरा में मातृभाषा भोजपुरी के प्रबल समर्थक।)

जगदीश्वर पांडे के कहनाम बा

भोजपुरी में ढेरन अइसन शब्द मिलेलन, जिनकर उदगम वेद के भाषा में बा। जइसे, दूलम-दुर्लभ के अर्थ में एह शब्द के प्रयोग होला। बाकिर भाषा के रूप में भोजपुरी के प्राण ओकर कहावत हवन। सशक्त अभिव्यक्ति के जइसन क्षमता भोजपुरी में बा, ओकरा देखके भाषा-वैज्ञानिक कुल्हि हरान रहि गइलन।
बाकिर भोजपुरी में ओह स्तर के पुस्तक नइखे, जे स्तर के असमिया भा बांग्ला में लिखल जा रहल बा। भाषा आ साहित्य के बचावे आ बढ़ावे खातिर ओह तरहे कवनो काम नइखे होखत, जेह तरेह से आन जगह हो रहल बा।
आठवीं अनुसूची में स्थान मिलल आवश्यक बा, बाकिर ओतने से भोजपुरी के मूल स्दरुप, ओकर प्राण ना बाची। एकर प्रयोजन मूलक स्वरुप बनावे के होखी। भोजपुरी के नांव पर फूहड़पन के जे व्यापार चल रहल बा, ओकरा देखके माथा गिरा लेवे के पढ़ेला। ओकर मोकाबिला करेके आ भोजपुरिया संस्कृति के बजावे-बढ़ावे खातिर सउसे भोजपुरिया क्षेत्र के एक साथ जोडेके पड़ी। भाषा के आधार पर सउसे भोजपुरिया क्षेत्र के एगो प्रशासनिक इकाई बनवला के लाभ निश्चत होखी। बलुक एकरा बिना भाषा-संस्कृति ना बाचे।

(बौध्द इतिहास आ पुरातत्व के प्रकांड पंडित जगदीश्वर पांडे, के.पी जायसवास शोध संस्थान, पटना के निदेशक रहनी। बौध्द साहित्य पर निरंतर लेखन में लागल बानी।)

एह ममिला प अगर रउओ कुछ कहल चाह तानी त राउर स्वागत बा. कलम उठाईं आ लिखीं आपन विचार. भोजपुरी भासा के संविधान में सामिल करावे खातिर मिल जुल के आंदोलन चलावे के जरूरत बा.

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