बुधवार, 5 नवंबर 2008


मुंबई में मनसे के लोगों द्वारा बिहार और यूपी के लोगों के खिलाफ जारी मुहिम अभी तो कुछ शांत दिखाई देती है, छठ भी शांतिपूर्वक गुजर गया. पर समस्या सुलझी नहीं है. बिहार आंदोलित है. मनसे के नेता राज ठाकरे भी बिहारी युवक राहुल राज की पुलिस गोली से हत्या और गोरखपुर के धर्मदेव राय की मनसे कार्यकर्ताओं के हाथों हुई हत्या और दिखावे की ही सही अदालती कार्रवाई के बाद शायद पुरबिया लोगों पर हमले का नया बहाना ढूंढ रहे हैं. बहरहाल महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) के प्रमुख राज ठाकरे के विवादास्पद बयानों के बाद महाराष्ट्र में जो बवाल मचा है, उसपर राष्ट्रीय जनता दल के सांसद और पूर्व केन्द्रीय मंत्री देवेन्द्र प्रसाद यादव से द संडे इंडियन के कार्यकारी संपादक ओंकारेश्वर पांडेय ने कुछ समय पहले खास बातचीत की.

- मुंबई में रेलवे की परीक्षा देने गए उत्तर भारतीय छात्रों से लेकर वहां रह रहे टैक्‍सी वालों और लोकल बसों, ट्रेनों में चल रहे निर्दोष लोगों को निशाना बनाया गया. आपकी क्या प्रतिक्रिया है. राज ठाकरे राज पाने और अपनी राजनीति चमकाने के लिए हिटलर शाही पर उतर आए हैं. जिसमें नीति नदारद है. और इससे देश की एकता और अखंडता गंभीर खतरे में पड़ गयी है. उनके भड़काउ बयानों और इशारों पर मुंबई में यूपी-बिहार समेत समूचे उत्तर भारत के लोगों पर हमले हो रहे हैं. इसके चलते एक परीक्षार्थी की मौत भी हो गयी, अनेक लोग घायल हुए हैं. इससे बिहार-यूपी से लेकर देश भर में आक्रोश है.


एमएनएस समर्थकों भोजपुरी फ़िल्में दिखा रहे कुछ सिनेमाघरों को भी निशाना बनाया. इस सारे बवाल के बाद राज ठाकरे की गिरफ्तारी हुई और उन्हे 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेजा गया है. क्या यह काफी है.
- नहीं यह नाकाफी है. राज ठाकरे भारतीय संविधान को धत्ता बता रहा है. देश की एकता को चोट पहुंचा रहा है. एक बीमार मानसिकता का आदमी समूचे महाराष्ट्र में तंडव मचा रहा है. उसे तो मीसा के तहत गिरफ्तार कर राष्ट्रद्रोह का मुकदमा चलाना चाहिए. यह गिरफ्तारी तो नॉर्मल है. यह काफी नहीं है.
-
इससे पहले भी जया बच्चन के हिंदी बोलने पर राज ने उनके खिलाफ जहर उगला. राज समर्थकों ने बॉलीवुड सुपरस्टार अमिताभ बच्चन के बंगले को निशाना बनाया. और इस सबके बाद राज बेधडक कहते रहे हैं माझी भूमिका, माझा लढा (महाराष्‍ट्र में छपा उनका आलेख-मेरी भूमिका मेरी लडाई) यानी जो हो रहा है वह अच्‍छा हो रहा है! याने राज ये सब करते रहेंगे.

- इसीलिए हम कह रहे हैं कि राज को गिरफ्तार करने भर से कुछ नहीं होगा. राज ठाकरे और एमएनएस के लोग जो कुछ कर रहे हैं, वह एक नये किस्म की आतंकवादी गतिविधि है. क्षेत्रीयता और भाषा के आधार पर ये जो दहशत फैलाया जा रहा है, वह आतंकवाद से कम नहीं है.


राज मुंबई की मराठी अस्‍मिता और संस्‍कृति को अपनाने की बात करते हुए कहते रहे हैं कि यदि महाराष्‍ट्र में रहना है तो यहां की हर चीज को अपनाना होगा. उधर झारखंड की एक छोटी क्षेत्रीय पार्टी ने राज का समर्थन किया है.

- यही खतरनाक है. झारखंड की वह पार्टी भी राज ठाकरे की तरह वहां से अन्य राज्यों के लोगों को भगाना चाहती है. इसी तरह अन्य प्रांतों में भी घटनाएं घटने लगीं तो क्या देश बच सकता है. इससे देश टूट जाएगा. इसलिए इस मामले में केन्द्र सरकार को कार्रवाई करनी चाहिए.

पर अभी तक तो केन्द्र सरकार ने कोई कार्रवाई की है ऐसा नहीं लगता.

- देखिए, राज गिरफ्तार हुए हैं. यह केन्द्र सरकार के इशारे पर ही हुआ होगा. लेकिन इसके बाद भी तोड़फोड़ जारी है. राज्य इसको रोकने में विफल होता है तो केन्द्र की जिम्मेवारी बनती है. उत्तर भारतीय लोगों के जानमाल की सुरक्षा के लिए केन्द्र को कड़ा कदम उठाना चाहिए. और यह नुकसान हो जाने के बाद न हो.

मंगलवार, 7 अक्टूबर 2008

नेपाल के विदेशमंत्री श्री उपेन्द्र यादव नयी दिल्ली में सप्ताहिक पत्रिका द संडे इंडियन के दफ्तर अइले

नेपाल के विदेशमंत्री श्री उपेन्द्र यादव नयी दिल्ली में सप्ताहिक पत्रिका द संडे इंडियन के कार्यकारी संपादक ओंकारेश्वर पांडेय के साथे बातचीत करत।



द संडे इंडियन के ग्रुप एडिटर प्रोफेसर ए संदीप उनकर स्वागत करत

नयी दिल्ली में सप्ताहिक पत्रिका द संडे इंडियन के दफ्तर में एगो विशेष प्रोग्राम - नो द नेशन, नो द वर्ल्ड के संबोधित कइले









सोमवार, 22 सितंबर 2008

मॉरीशस के बाद अब नेपालो में
मिली भोजपुरी भाषा के मान्यता


जो भी भाषा मधेश में बोली जाती है, चाहे वो मैथिली हो या भोजपुरी, अवधी या हिंदी-उन सबको पर्याप्त सम्मान मिलना ही चाहिए. यह हमारी भाषा है. यह केवल हिंदुस्तान की भाषा नहीं है. भाषा की कोई सीमा नहीं होती है. निश्चित तौर पर यह हमारी लड़ाई है. हम चाहते हैं कि नेपाली के साथ हिन्दी भी वहां रहे. जब हिंदी, मैथिली का विकास होगा तो भोजपुरी का विकास भी होगा ही. हम इन भाषाओं को नेपाल में मान्यता दिलाने की कोशिश करेंगे.....ई कहनाम रहे नेपाल के विदेश मंत्री उपेन्द्र यादव के. एकरा से ई उमेद भइल बा कि मॉरीशस के बाद अब नेपालो में एह भाषा के मान्यता मिल जाई. आपन महान देश भारत में कब मिली ई पता नइखे.....

लोकतंत्र के गठन के बाद बने नेपाल के प्रधानमंत्री के पहिला भारत यात्रा के मौका प नेपाल के उप प्रधानमंत्री आ विदेशमंत्री उपेन्द्र यादव से ओंकारेश्वर पांडेय के ई खास बातचीत समाचार सप्ताहिक द संडे इंडियन में 14 भाषा में छपल बा. पढ़ीं ई खास इंटरभ्यू-

प्र.- नेपाल के प्रधानमंत्री की यह पहली भारत यात्रा है. यात्रा ओवरऑल कैसी रही. इसमें क्या बातचीत हुई. इस दौरे से क्या लगता है आपको?

- नेपाल में संघीय लोकतंत्र बनने के बाद प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड की चीन के बाद भारत की यह दूसरी यात्रा है. यह यात्रा सद्भावना यात्रा है. हमें गुडविल क्रिएट करना, आपसी विश्वास को बढ़ाना है. नेपाल में राजशाही खत्म होने के बाद लोकतंत्र की स्थापना हुई है.और उसके बाद बनी है सरकार. भारत और नेपाल के बीच मित्रता, आपसी सद्भाव और सहयोग को बढ़ाने और नया दिशा देने की यात्रा है.

प्र.- परंपरा यह रही है कि नेपाल के जब शीर्ष नेता निकलते थे, तो पहले भारत की यात्रा करते थे. यह पहली बार हुआ, जब वे पहले चीन गये और उस बाद भारत आये. इस पर काफी बातें भी हुईं. आप कुछ संक्षेप में कहना चाहेंगे?

-पहली बात तो यह कि चीन यात्रा तो उनके ओलंपिक समापन समारोह में भाग लेने के लिए था. और दूसरी बात यह है कि प्रचलन रहा है भारत आने का लेकिन ऐसा नहीं रहा कि दूसरे जगह नहीं जायें.

प्र.- भारत उन देशों में है, जो यह मानता है कि नेपाल से हमारे इतने पुराने, इतने प्रगाढ़ संबंध हैं कि सबसे पहले कोई नेता निकलता है तो वह यहां आना पसंद करता है. तो क्या इस नीति में कोई बदलाव दिखता है? क्या आप भारत को भी दूसरे देशों की तरह देखने लगे हैं या पहले की तरह उसका दर्जा बरकरार है.?

-नहीं-नहीं, देखिए! हमारे सभी देशों से अच्छे संबंध हैं. चीन से भी अच्छे संबंध है. वो भी पड़ोसी हैं उत्तर में और भारत दक्षिण में. दोनों असल पड़ोसी हैं और दोनों मित्र हैं. दोनों के साथ हमारे कूटनीतिज्ञ और राजनैतिक संबंध हैं. लेकिन भारत के साथ कुछ विशेष है. जो किसी देश के साथ नहीं है. और विशेष इस मायने में कि यह यूनिक है. यह संस्कृतियों का संबंध है. कहा जाय तो यह संबंध ही नहीं है, यह रिश्तेदारी भी है. यह किसी और दूसरे चीजों से बहुत ऊपर है. यह पारिवारिक, भावनात्मक, धार्मिक, संस्कृतियों और बेटी-रोटी का संबंध है, न जाने कितने-कितने तरह का संबंध है. इसलिए इस संबंध के साथ मै जहां भी जाता हूं तो यही कहता हूं कि भारत के साथ हमारा जो रिश्ता है, उसकी तुलना दूसरे देश के साथ नहीं की जा सकती है.

प्र.-राजशाही के समय के भारत के साथ नेपाल के संबंध और अब लोकशाही में भारत के साथ संबंध. क्या आप कोई नयापन या भिन्नता देखते हैं?

-भारत के साथ नेपाल का जो राजशाही के समय संबंध था. उससे बेहतर संबंध दोनों देशो में लोकतांत्रिक व्यवस्था में होगा.

प्र-यह नया बेहतर संबंध किस तरह का होगा? माओवादी सरकार किस प्रकार का संबंध चाहती है भारत से?

-अब देखिए! दोनों देशों की आवश्यकता है शांति स्थापना. दूसरा है, बॉर्डर पर आपराधिक गतिविधियां. सीमा पार आंतकवादी गतिविधियों के साथ-साथ भारत-नेपाल सीमा पर तस्करी तथा कई तरह की अन्य समस्याएं भी हैं, जैसे अपराधी इधर से भाग कर उधर जाते हैं. यह सब दोनों देशों की शांति और सुरक्षा में बाधा डाल रही है. इसलिए हम दोनो देशों को एक साथ मिल कर लड़ना चाहिए. दूसरा-आर्थिक प्रगति के लिए भारत और नेपाल को मिलकर आपसी समझ और सहयोग के साथ आगे बढ़ने की आवश्यकता है. दोनो देशों का आर्थिक विकास है. नेपाल काफी पीछे रह गया है, उसे भी आगे लाया जाय. वहां भी संसाधन काफी हैं. जैसे हाइड्रो पावर है. टूरिज्म है, कृषि है. उसके विकास से भारतीय जनता को भी प्रत्यक्ष लाभ होगा, नेपाल की जनता तो होगी ही. यह संबंध आने वाले दिन में एक दूसरे के साथ और भी ज्यादा निकट होने की संभावना है.

प्र-आपने आतंकवाद की चर्चा की. पिछले दिनों देखने को मिला कि भारत में जो आतंकवादी गतिविधियां चल रही है, खास तौर से आईएसआई की गतिविधियां, उनमें नेपाल की जमीन का इस्तेमाल किया जाता है. आने जाने में भी नेपाल के रास्ते का इस्तेमाल किया गया....

-यह कहना कि यह सारा काम नेपाल से ही होता है, ऐसा नहीं है. यहां भी होता है. भारत तो पूरी दुनिया के लोगों के ठहरने की जगह रहा है. आज से नहीं इतिहास ज़ल से चाहे वे मुगल आये हों या तुर्क आये हों, चाहे वो अरबी आये हों या पुर्तगाली आये हों, चाहे अंग्रेज आये हों या फ्रांसीसी आये हों. चाहे पड़ोस का कोई भी आया हो. सभी की शरणस्थली भारत भूमि आज से नहीं हजारों हजार साल से रहा है. यहां सब लोग रहते हैं. खराब लोग भी रहते है, अच्छे लोग भी रहते हैं. इसलिए मै यह कहता हूं कि नेपाल आतंकवादियों का अड्डा है, बहुत बड़ा नेटवर्क है और वहीं से सारा कुछ चलता है. यह कहना नेपाल के लिए उचित नहीं होगा. यहां भी समस्याएं है, वहां भी समस्याएं है.

प्र- क्या आपको लगता है. दोनो देशों को इस मसले पर आपस में मिलकर काम करना चाहिए?

-मिलकर काम करें तो दोनों की जीत होगी.

प्र.- भारत-नेपाल सीमा लगभग खुली हुई है. इस बार के दौरे में आपके प्रधानमंत्री प्रचंड ने हमारे प्रधानमंत्री से कहा है कि 1950 की संधि की दोबारा समीक्षा होनी चाहिए, क्या वह रद्द होनी चाहिए? नेपाल की सरकार संधि को लेकर क्या चाहती है?

-देखिए! नेपाल की जनता और भारत की जनता दोनों चाहते हैं कि यह सीमा खुली रहे. जिससे दोनो देशों के बीच जो बेटी- रोटी का रिश्ता है, वो बना रहे. किसी तरह की दीवार भारत की जनता या नेपाल की जनता पसंद नहीं करती है.

प्र.- क्या 1950 की संधि उसमें दीवार है?

-ऐसा नहीं है. 1950 की संधि मित्रता और भाईचारे की संधि है. उसका ऐतिहासिक महत्व है, लेकिन आज समय तो बहुत बदल चुका है. 1950 और 2008 के बीच गंगा और यमुना दोनों का पानी बहुत बदल चुका है. परिवर्तन आया है. अंतरराष्ट्रीय संबंधों में बदलाव आया है. इसी के अनुकूल दोनो देशों को मिलकर सुधार करना चाहिए. दिशा नकारात्मक नहीं होनी चाहिए. दिशा सकारात्मक होनी चाहिए. उस संधि को और मजबूत करना चाहिए. और ये संबंध और मजबूत करने की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए. दोनों देशों के बीच किसी तरह का कोई कन्फ्यूजन नहीं रहना चाहिए. ओपेन हार्ट होना चाहिए. मित्रता और सहयोग होना चाहिए. किसी समस्या को समय रहते उठाने में भारत को कोई एतराज नहीं है- ऐसा नेपाल का मानना है. इसके लिए भारत भी तैयार है.


प्र.-कोसी की पानी ने बिहार में भारी तबाही मचायी है. जाहिर है, आप यहां भी तबाही है. प्रचंड जी ने उस बांध से संबंधित संधि को लेकर जो बात की है. क्या नेपाल इसे निरस्त करने के पक्ष में है?

देखिए! कोसी नदी नेपाल में खासकर मधेश भाग जहां हम लोग रहते हैं, बहती है. नेपाल का मधेश भाग और बिहार का दुख एक है. जीवन प्रणाली एक है और नदियां भी दोनों को एक ही दुख देती हैं. दोनों देश की जनता और सरकारों को मिलकर रास्ता निकालना चाहिए. ताकि इस दुख देने वाली नदी को दोनों देश की जनता मिलकर आर्थिक प्रगति देने वाली नदी के रूप में परिणत कर दें. ताकि कोसी लाइफ लाइन बन जाय. बस यही हमारी चाह है.

प्र.- सन् 1968 में कोसी पर जो हाईडैम बनाने की बात थी. उसको लेकर अब क्या स्थिति है?

-उसका सर्वे हुआ है. नेपाल सरकार चाहती है कि हाई डैम बनाना है कि नहीं बनाना है. इसके लिए दोनों देशों की तरफ से तकनीकी रूप से अध्ययन होना चाहिए. क्योंकि इस प्रलय के बाद (हम तो इसे प्रलय ही कहेंगे जिसमें 40 लाख लोगों की तबाही हो गई है) यह जरूरी हो जाता है कि हर पहलू पर सोच कर आगे बढ़ा जाय. अध्ययन होना चाहिए. भौगोलिक पक्ष से, जियोलॉजी के पक्ष से और इंजीनियरिंग के पक्ष से भी. दोनों देशों को मिलकर ऐसे विनाश से बचने का स्थायी समाधान करना चाहिए. साथ ही साथ अगर हाईडैम बनेगा तो बिजली निकलेगी. बिजली होगी तो फैक्ट्री चलेगी, रोशनी मिलेगी और सिंचाई होगी. और इन सब से तरक्की होगी. तो इस रास्ते में और इस दिशा में क्यों नहीं प्रयास किया जाय.

प्र.-भारत-नेपाल रिश्तों के बीच विवाद का और कौन सा बिंदु रह गया है?
-हम सब मिलकर पता लगाएं. सीमा समस्या है. ट्रांजिट की समस्या है. सीमाओं में दो जगह विवाद का बिंदु रहा है. खासकर कालापानी और तिस्ता. इन सबको हल कर लेना चाहिए.
इस बारे में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी से बात हुई है, और आगे भी होगी.

प्र.-नेपाल में जब उप-राष्ट्रपति ने हिंदी में शपथ लिया तो इस पर बड़ा बवाल हुआ. मीडिया में भी इसे बहुत उछाला गया. आप मधेश क्षेत्र से आते हैं और नेपाल की आधी आबादी हिंदी बोलती है. क्या जिस देश की आधी आबादी हिंदी बोलती है. उस भाषा को उस देश के संविधान में मान्यता नहीं मिलनी चाहिए?

-इसी की लड़ाई चल रही है. जो भी भाषा मधेश में बोली जाती है, चाहे वो मैथिली हो या भोजपुरी, अवधी या हिंदी-उन सबको पर्याप्त सम्मान मिलना ही चाहिए. यह हमारी भाषा है. यह केवल हिंदुस्तान की भाषा नहीं है. भाषा की कोई सीमा नहीं होती है. निश्चित तौर पर यह हमारी लड़ाई है. हम चाहते हैं कि नेपाली के साथ हिन्दी भी वहां रहे.

प्र.-और भोजपुरी?

-जब हिंदी, मैथिली का विकास होगा तो भोजपुरी का विकास भी होगा ही. हम इन भाषाओं को नेपाल में मान्यता दिलाने की ज़ेशिश करेंगे.

प्र.- अब माओवादियों का संघर्ष सत्ता तक पहुंच चुका है. तो प्रश्न यह उठता है कि जो काडर के लोग इस संघर्ष में शामिल थे, उनकी बंदूंकें अपराधियों के हाथ में न चली जाय, और वे नेपाल की मुख्यधारा से जुड़ें इस लिए आपकी सरकार क्या प्रयास कर रही है?

-बंदूकधारियों को मुख्यधारा में लाया जाय, इसके लिए सरकार प्रयास कर रही है. जब माओवादी सबसे बड़े बंदूकधारी मुख्यधारा में आ सकते हैं, तो बाकी क्यों नहीं?

प्र.- भारत के विभिन्न राज्यों में नक्सलवादी आंदोलन चल रहा है. इनको कहीं ना कहीं नेपाली माओवादियों की सफलता से प्रेरणा मिल रही है. नेपाल की सरकार भारत के इस आंदोलन को किस रूप में देखती है?


-देखिए! भारत का नक्सली आंदोलन, नेपाल में माओवादी आंदोलन को प्ररेणा देने वाला रहा है. प्रचंड जी ने यहां खुद बताया है कि नेपाल में संघर्ष के दौरान उनका 90 प्रतिशत समय भारत में ही बीता है. यहां के जो माओवादी या नक्सलवादी हैं उन्हीं से प्रेरणा मिली है. हथियार और सहयोग दोनों मिला है. मगर आज रास्ते बदल चुके हैं. वहां के माओवादी अब दूसरे रास्ते पर चल चुके हैं.

शनिवार, 13 सितंबर 2008

कश्मीर में आतंकवाद पर हिंदी में पठनीय पुस्तक

यह पुस्तक सन २००० में छपी थी और इसका विमोचन तत्कालीन केन्द्रीय गृहमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी ने संसद भवन स्थित अपने कार्यालय में किया था। समय ,प्रकाशन दिल्ली द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक का दूसरा संस्करण हाल ही में छप कर आया है। यह इसकी लगातार बढ़ती मांग का परिचायक है.

बुधवार, 10 सितंबर 2008

भोजप्रदेश के गठन का विचार से भोजपुरी भाषा आ समाज के विकास कवन तरेह जुडल बा, एकरा विषय में हिन्दी के प्रतिष्ठित लेखक, आलोचक आ प्राध्यापक कर्मेन्दु शिशिर के लगे ढेर तर्क बाडन सॅ। उनकरा सॅगे बतियावे में एह विचार के ढेर जानल-अनजान पहलू के ज्ञान होखेला। द संडे इंडियन खातिर उनका से अमरनाथ के बातचीत के एगो अंश नीचे दिहल जा रहल बा।

सवाल-भोजपुरी अबहीं सविधान में शामिल नइखे भइल, बाकिर भोजपुरी प्रदेश गठन के मांग उठ गइल। एकर असर का होइ, सारा मामिला गडबड़ा ना जाइ का -
शिशिर- भोजपुरी प्रदेश के नक्शा बनाके ओकर एगो वैचारिक आधार राहुल सांस्कृत्यायन दिहले रहलन। ओह नक्शा आ विचार के सामने लेके गंभीरता से संगठित आंदोलन होखे त, एक ना एक दिन एहू दिशा में कामयाबी मिल सकेला। राजनीति में कवनो चीज असंभव नइखे। बाकिर आज राज्यवार राजनीति के जे सुप्रीमो बा, ऊ आपन इलाका में सहजे उलट- पुलट ना करे दिही। आ कवनो अइसन संगठन नइखे जवन देश-विदेश में बसल लोगन के जोडे, ओकर सहयोग ले आ जबरदस्त आंदोलन के सिलसिला शुरू करे। एह सबके शुरुआत भोजपुरी अस्मिता के पहचान आ आत्मगौरव से ही हो सकेला। अइसन यदि हो जाए त सांस्कृतिक स्तर आ आर्थिक स्तर पर भी भोजपुरी जनपद के समाज आश्चर्यजनक तरीका से समृध्द हो जाई।
सवाल-आठवीं सूची मे शामिल भइला के बादे भाषा के विकास होई, अइसन बा का।
शिशिर- जवन भाषा आठवीं सूची में शामिल रहे आ हाल-फिलहाल जेकरा के शामिल कइल गइल, ओकर विकास केतना भइल बा। एकरा देखला से साफ बा जे आठवीं सूची में शामिल कइल जेतना जरूरी बा़, ओकरा से जादा जरूरी ई बा कि भोजपुरी भाषी लोग पहिले खुद आपन अस्मिता के पहचान करे आ ओकरा के समृध्द करे खातिर विभिन्न क्षेत्रन आ विधन में महत्वपूर्ण काम संभव करे। भोजपुरी के साहित्य में सबसे महत्वपूर्ण ओकर लोकसाहित्य बा। एतना समृध्द शाइदे कवनो लोकभाषा के होखे। लेकिन विधा के मोताबिक होरी-चैती छोड़के़, आज ले ओकर कवनों संग्रह ना भइल। जइसे-कजरी, बिरहा, डोमकच, रोपनी, कटाई आ आउरो अइसन विधा के अलग-अलग संग्रह देखे में नइखे आइल। ओही तरे भिखारी ठाकुर के विदेशिया अगर छोड़ दिहल जाए त अउरु लोकनाट्य या गीतनाट्य के परंपरा पर कवनो कामे नइखे भइल।
सवाल-आठवी सूची आ अलग राज्य भाषा आ समाज का विकास खातिर अनिवार्य बा का
शिशिर-अइसन नइखे। आपन अस्मिता के पहचान कइल जरूरी होखेला। मैथिली के भीत्तिचित्र साहित्य सउसे दुनिया में सम्मानित हो गइल। आ भोजपुरी में एकर शुरुआतो नइखे भइल। आरा में साडी-बाटिक कला में टिकुली पेंटिग आ एही तरह के अउर छापा उद्योग छोट पैमाना पर फलफूल रहल बा। अगर ओकरा केहू ढंग से विकसित करे त ऊ राजस्थान जइसन चुनरी उद्योग के बड़ रुप ले सकेला।
सवाल-अबहीं भोजपुरी के जवन विकास होखता, ओकरा ठीक मानल जाइ का
शिशिर- भोजपुरी संगीत में समझदारी के अभाव आ पूरा समाज के ध्यान ना देहला के कारण एकदम अश्लील संगीत उद्योग विकसित हो गइल बा। धर्म आ यौन के युगलबंदी पूरा भोजपुरी संगीत बाजार के अपना चपेट में ले लिहले बा। अगर कवनों समझदारी से लोकगीतन आ साहित्य में लिखल गइल गीतन के ढंग से चयन करके गंभीर गायकन आ संगीतकारन द्वारा अगर एह उद्योग के विकसित कइल जाए त ई पंजाबी लोकसंगीत जइसन विशाल संगीत उद्योग खड़ा कर सकेला। भोजपुरी के खान-पान में एगो लिटी उद्योग लालूजी के कारण आज बाजार में जबरदस्त पहुंच बनवले बा। लेकिन भोजपुरी जनपदन में कइगो अइसन मिठाई मिलेला, जेकरा के आज के बाजार के ध्यान में रखके ढालल जाव, त बहुत बड़ वर्ग के जीवन-दशा ही बदल जाई। भोजपुरी संस्कृति आ समाज से जुड़ल ई छोट-मोट संकेत में ही कइगो बड़ उद्योग के संभावना बा आ एकरा से भोजपुरी समाज के जीवन-स्तर बदल देवे के कूब्बत बा।
सवाल- एकरा भाषा आ संस्कृति के बाजार मे खडा करि दिहल ना कहल जाई का
शिशिर-कवनो साहित्य आ संस्कृति बाजार से डेराके भागी त ओकर जिअल मुश्किल बा। ओकरा अपने भीतर से अइसन पक्षन के सुनियोजित तरीका से मजबूत कके अपने भरोसे बाजार में ताल ठोकके आवेके पड़ी। अपना खांटीपन के बचावले काफी ना ह। ओकराके नया रुप लेके आज जुधम-जुध करेके पड़ी। भोजपुरी जनपदन में खासकर बिहार के भूई बहुते उपजाऊं ह। अउर एकरा लोगन में बहुत ताकत बा। राजनीति अउर संगठन आ नेतृत्व के दूरदर्शिता से ही ई सब संभव हो सकेला। दूसर कवनो रास्ता नइखे।
भोजपुरी फिलिमन के सउसे संसार में बाजार बा। ओकर एतना अनाड़ी आ भोड़ा तरीका के व्यवसाय फइलल बा कि देख-सुनके केहुके मन भिनभिना जाई। जबले फिलिमन के आधार भोजपुरी साहित्य आ भोजपुरी जनपद से जुड़ल हिन्दी साहित्य पर आधारित कवनो दिमाग वाला आदमी ना जुड़ी तबले ई फरिआए वाला नइखे। कवनो भोजपुरी फिलिम के भाषा तक में खांटीपन नइखे। एह खातिर शुरू में जवन कुछ हम कहले बानी ओकरा के जोड़के विचार करेके चाही।
सवाल-राष्ट्रभाषा हिन्दी के हित में एक समय भोजपुरी वगैरह भाषन के जिकिर छोड दिहल गइल रहे। अब भोजपुरी के एह तरह से विकास अभियान आरंभ कइला के असर का होखी

शिशिर-दुनिया में कवनो एगो भाषा के विकास अगर ईमानदारी आ विवेक से होई त ऊ कवनो दोसर भाषा के नोकसान ना पहुंचाई। उलटे ओकरा से फायदा ही होई। ऊंच शिक्षा में एह भाषन के शामिल कइला से का फाइदा होता, एकरा प त लोग विचार करता लेकिन एह पर विचार नइखे करत कि एकरा से का नोकसान होता। जादातर अइसन भाषा आपन पाठ्यक्रम में संस्कृत आ हिन्दी के सीधे नकल करके शामिल कइले बा। हिन्दी से अलगावे वाला पक्ष पर ओकर जोर नइखे। एह से कुछ लोग एह सुविधा के जादा लाभ उठा लेता। बढ़ावा के नाम पर कापी जांचे वाला एह में एतना जादा नंबर देता कि दोसरा विषय के लइकन सबके गरदन कटा जाता। एह गला काट प्रतियोगिता के समय में एह तरेह के छिनाझपटी के कारण ही एह भाषन के विरोध जबरदस्त बा। एह से तात्कालीक लाभ भले मिले लेकिन ई भाषा एह तरीका से धीरे-धीरे मरि जइहन सँ। काहे से कि पढ़े वाला के मन में ई बात बइठल रही जे बिना कवनो स्तर के भी एकरा में ढेर नंबर मिल जाई। इहे हाल हिन्दी के भी भइल बा।
सवाल- राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी के विरोध एह से बढि ना जाइ का
शिशिर- भारतीय भाषन के बीच के लड़ाई के पीछे स्पष्ट भाषा नीति अउर समझ के अभाव बा। भाषा के समृध्दि खातिर जवन गुण होखे के जाहत रहे, तवनो अवगुण बन गइल बा एह देश में। अंग्रेजी के जहवां आ जेतना प्रयोग होखे के चाहीं, ऊ जरुर होखो लेकिन ओकर बेफांट प्रयोग के पीछे मूल मंशा धन बा। अंग्रेजी पुस्तक व्यवसाय में आ कॉस्मेटिक, शराब भा अउरो अइसन बहुते मामला में अरबों रुपया विदेश जा रहल बा। कुत्ता पर, घोड़ा पर आ बहुत-बहुत तरह के विषयन पर लिखल किताब, बेमतलब के उत्पाद पर विपुल धनराशि अंग्रेजिए के कारण बाहर जा रहल बा।
एह सब पर विचार कइल जाओ आ जहवां से जवना भाषा में ज्ञान आ काम के चीज होखे ऊ जरूर आवे, लेकिन अपना भाषा के समृध्द करे खातिर, धन लुटावे खातिर ना। अगर अइसन होखे त कवनो भारतीय भाषा आपस में ना लडिहन आ अइसन ना होई त अंगरेजी मलाई खाई आ ई सब आपस में जुझबे करिहन सँ।
द संडे इंडियन में छपल इंटरभ्यू
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मंगलवार, 27 मई 2008

भोजपुरी भासा के संविधान में सामिल करावे खातिर आंदोलन के जरूरत बा

पढ़ीं भोजपुरी भासा के सवाल प भोजपुरिया समाज के बुद्धिजीवी आ पुरनिया लोगन के का कहनाम बा

प्रो कर्मेन्दु शिशिर के कहनाम बा

भोजपुरी के आठवीं अनुसूची में राखे में केहूके विरोध ना होखे के चाही। भाषा के विस्तार आ भाषा-साहित्य के प्राचीनता में एकर स्थान ऊंचा बा। भोजपुरी के उत्स सरहपाद जइसन सिध्द कवियन में मिलेला। सिध्द कवियन के भाषा में प्राकृत आ अपभ्रंश के अइसन शब्द मिलेलन, जेकर आन कइनगो बोलियन में विकास भइल। बाकिर कबीर विशुध्द रूप से भोजपुरी कवि हऊअन। ऊनकरा परंपरा चलत रहल।

प्राचीनता आ विस्तार में भोजपुरी दुनिया में स्थान राखेला। कठिनाइ सिरिफ एहसे बा जे भोजपुरी के अकादमिक स्वरुप नइखे उभरल। बाकिर बिहार भोजपुरी अकादमी अगर एगो काम कइले बा त 1883 से 1983 के बीच प्रकाशित भोजपुरी ग्रंथन के विवरण तइयार करके प्रकाशित कर दिहले बा। हजारन कमजोरी हो सकेले, बाकिर भोजपुरी साहित्य के इतिहास आ अन्य ग्रंथ लिखाल जा रहल बा। सृजनात्मक साहित्य के सतत प्रवाह चल रहल बा।

(प्रो कर्मेन्दु शिशिर पटना के एगो कालेज में हिन्दी के व्याख्याता आ प्रतिष्ठित लेखक बानी। महापंडित राहुल सांस्कृत्यायन, हजारी प्रसाद द्विवेदी आ केदारनाथ सिंह के परंपरा में मातृभाषा भोजपुरी के प्रबल समर्थक।)

जगदीश्वर पांडे के कहनाम बा

भोजपुरी में ढेरन अइसन शब्द मिलेलन, जिनकर उदगम वेद के भाषा में बा। जइसे, दूलम-दुर्लभ के अर्थ में एह शब्द के प्रयोग होला। बाकिर भाषा के रूप में भोजपुरी के प्राण ओकर कहावत हवन। सशक्त अभिव्यक्ति के जइसन क्षमता भोजपुरी में बा, ओकरा देखके भाषा-वैज्ञानिक कुल्हि हरान रहि गइलन।
बाकिर भोजपुरी में ओह स्तर के पुस्तक नइखे, जे स्तर के असमिया भा बांग्ला में लिखल जा रहल बा। भाषा आ साहित्य के बचावे आ बढ़ावे खातिर ओह तरहे कवनो काम नइखे होखत, जेह तरेह से आन जगह हो रहल बा।
आठवीं अनुसूची में स्थान मिलल आवश्यक बा, बाकिर ओतने से भोजपुरी के मूल स्दरुप, ओकर प्राण ना बाची। एकर प्रयोजन मूलक स्वरुप बनावे के होखी। भोजपुरी के नांव पर फूहड़पन के जे व्यापार चल रहल बा, ओकरा देखके माथा गिरा लेवे के पढ़ेला। ओकर मोकाबिला करेके आ भोजपुरिया संस्कृति के बजावे-बढ़ावे खातिर सउसे भोजपुरिया क्षेत्र के एक साथ जोडेके पड़ी। भाषा के आधार पर सउसे भोजपुरिया क्षेत्र के एगो प्रशासनिक इकाई बनवला के लाभ निश्चत होखी। बलुक एकरा बिना भाषा-संस्कृति ना बाचे।

(बौध्द इतिहास आ पुरातत्व के प्रकांड पंडित जगदीश्वर पांडे, के.पी जायसवास शोध संस्थान, पटना के निदेशक रहनी। बौध्द साहित्य पर निरंतर लेखन में लागल बानी।)

एह ममिला प अगर रउओ कुछ कहल चाह तानी त राउर स्वागत बा. कलम उठाईं आ लिखीं आपन विचार. भोजपुरी भासा के संविधान में सामिल करावे खातिर मिल जुल के आंदोलन चलावे के जरूरत बा.

बुधवार, 21 मई 2008

तनी संसद हिलाव त जानीं-- द संडे इंडियन-भोजपुरी सप्ताहिक में छपल लेख-साभार

ओंकारेश्वर पांडेय – अमरनाथ

चार गो चोर आ चउदह गो हमनीं के..अइलन स चोर त भाग गइनीं जा हमनीं के..बाह रे हमनीं के..बचपन में एगो कहाउत सुनले रहीं. पूरा त याद नइखे बाकिर ई ओकर जबर्जस्त लाइन रहे. सुन के हंसी छूट जाला. काहे ना छूटी. भोजपुरी भाषा के हालत देख लीं त बुझा जाई. पालिर्यामेंट में ई कब से लटकल बा, सभके मालूम बा कि भारत के पांच राज्यन के 25-30 जिला आ पडोसी नेपाल के छव गो जिला में मातृभाषा भोजपुरी बा. लोकसभा में भोजपुरी क्षेत्र के बिहार से 11 गो, उत्तर प्रदेश से 21 गो, छत्तीसगढ़ के चार गो आ झारखंड के दू गो सदस्य भोजपुरिया हलका के चुनाव क्षेत्रन से आवेलन. एकरा अलावे झारखंड, बंगाल, असम, पंजाब, मुंबई आ दिल्ली के कइएक लोकसभा चुनाव क्षेत्रन में भोजपुरिया लोगन के वोट से जीत-हार के फइसला होखेला. कुल्ह मिलाके लोकसभा में पचास से अधिका भोजपुरियन के साथे-साथ राज्यसभा में कबहीं असम से मतंग सिंह त ओने महाराष्ट्र से संजय निरुपम जइसन लोगन के उपस्थिति रहेला. बाकिर भोजपुरी के आवाज सुनेके संसद तैयार नइखे भा सुनिके अनसूना करता, एह के का कहल जा सकेला. एह बात से भोजपुरिया लोगन के खिसियाइल स्वाभाविके नू बा. एतना लोग चाहीत त संसद में आपन बात मिल के ठीक से उठाइत आ तब देखल जाइत कि सरकार कतना दिन एह प टालमटाल करत बिया. एह भाषा के लोगन में एह बात के बड़ टीस बा कि कई गो छोट-छोट भाषो के सरकार मान्यता दे दिहलस बाकिर भोजपुरी आ राजस्थानी लटकल जा रहल बा.
13 दिसम्बर 2006 के जब ई खबर आइल कि केन्द्र सरकार 'भोजपुरी के संविधान के अठवां अनुसूची में शामिल करे के मांग के' सैद्धांतिक रूप से स्वीकार कर लिहलस त सरकार के एह घोषणा के बाद भोजपुरिया लोग में खुशी के लहर दौड़ गइल. लोग कहे लगले कि बरिसन के तपस्या आज फलीभूत भइल बा. गृह राज्यमंत्री श्री प्रकाश जायसवाल लोकसभा में ई जानकारी देत तब कहनी कि ' एह संदर्भ में विभिन्न मंत्रालयन से आपन विचार आ आपत्ति देवे के कहल गइल रहे . लगभग सब विभाग अपना विचार से सरकार के अवगत करा देले बा. एह विषय में कवनो विभाग के कवनो आपत्ति नइखे. ' भोजपुरी समाज के लोग एकरा प कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के बधाई भी दे देलस. इहां तक कि 24 जनवरी के केन्द्रीय खाद्य प्रसंस्करण मंत्री सुबोध कांत सहायो प्रधानमंत्री के चिट्टी लिख के भोजपुरी के मान्यता देवे खातिर बधाई दीहले. बाकिर समय बीतत गइल आ सरकार के घोसना प अमल ना भइल.
तब पिछिला 14 मार्च 2008 के प्रभुनाथ सिंह फेर ई सावल उठवले आ सरकार प आरोप लगवले कि ऊ आपन वादा पूरा करे में फेल हो गइल बिया. अतनो प कुछ ना भइल त प्रभुनाथ सिंह गृह राज्यमंत्री श्री प्रकाश जायसवाल से अतना खिसियइले कि 22 अप्रैल के ऊ लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी से उनका खिलाफ सदन के गुमराह आ अवमानना के नोटिस देवे के अनुमति मांगे लगले.
लेकिन एकरा बाद अबहीं हाले में 29 अप्रैल 2008 के श्री जायसवाल जद यू सांसद प्रभुनाथ सिंह के सवाल के जवाब में लोकसभा के ई बतवनी कि अबहीं एकरा में देरी बा काहे कि संघ लोक सेवा आयोग के पहिले से मान्यता मिलल 22 गो भाषा के परीक्षा लेवे में दिक्कत हो रहल बा. ओने रिजर्व बैंको सरकार से कहलस कि नोट पर अब एगो अउर भाषा में लिखल मुशि्कल बा. द संडे इंडियन से बातचीत में प्रभुनाथ सिंह उमेद जतवले कि एह समस्या के दूर करे खातिर सरकार प्रयास कर रहल बिया, अगिला सत्र तक मान्यता मिल जाए के चाहीं.
बाकिर भोजपुरिया लोग एकरा से बहुत खुश नइखन. एकरा में भोजपुरिया इलाकन के सांसद लोग में एकता के कमी भी मानल जा रहल बा. हालांकि प्रभुनाथ सिंह कहले कि ऊ जबहूं ई सवाल उठवले त भोजपुरिया क्षेत्र के सांसद लोग समर्थन कइले, दोसर लोग भी कइले. पर ऊ मनले कि सब लोग ुमल के प्रयास करिते त जल्दी हो गइल रहीत.
गोवा में दस साल तक सेवा में रह चुकल यूटी काडर के आईपीएस अधिकारी आईडी शुक्ला द संडे इंडियन से कहले कि कोंकणी बोले वाला मात्र 14-15 लाख लोग बा. एह भाषा के मांग 1979-80 से शुरु भइल आ जल्दिए मान्यतो मिल गइल. श्री शुक्ला कहले कि भोजपुरी के अबहीं तक मान्यता ना मिले के पीछे कारण समाज के लोगन में जागरुकता आ जनप्रतिनिधियन में एका के कमी बा. भोजपुरिया लोग के अपना इच्छा से ओह लोग प दबाव बनावे के चाहीं.
दू बार संसदीय राजभाषा समिति के उपाध्यक्ष रह चुकलन प्रो. रामदेव भंडारी खुद मैथिली हवन. ऊ द संडे इंडियन से कहले कि मैथिली के मान्यता त ओह घड़ी गृह मंत्री रहन लाल कृष्ण आडवाणी भोट खातिर दे दीहलन. बाकिर भोजपुरी के लोग सरकार प दबाव ना बना सकले. एकरो के मान्यता त एक ना एक दिन मिलबे करी बाकिर एकरा खातिर मिल के प्रयास करे के चाहीं.

केन्द्रीय खाद्य प्रसंस्करण मंत्री सुबोध कांत सहाय द संडे इंडियन से कहले कि सरकार के मंसा प शक ना करे के चाहीं. सरकार एकरा बारे में कार्यवाही पूरा करे के करीब बिया, अगिला संसद सत्र तक मान्यता मिल जाए के पूरा उमेद बा.
भाषा के अर्थ में भोजपुरी के उल्लेख पहिले-पहिल सन 1789 में मिलेला. अंगरेजी राज के दस्तावेजन में एकर उल्लेख बा. फिरंगी सेना के सिपाहियन के बोली के भोजपुरिया कहल गइल रहे. चुनारगढ़ के ओर जात सिपाही अपना के काशी के राजा चेतसिंह के रैयत बतवलन. ग्रिअर्सन के लिखल एह प्रसंग के उल्लेख डॉ उदय नारायण तिवारी के पुस्तक भोजपुरी भाषा और साहित्य में कइले बानी. पंडित गणेश चौबे के मोताबिक ओकरा बाद जॉन बिम्स 1868 में भोजपुरी के बारे में एगो लेख प्रकाशित करइलन. हौर्नले, फ्रेजर आ ग्रियर्सन एह भाषा के भोजपुरी नाम देत कइगो लेख आ पुस्तक प्रकाशित करइलस लोग. भोजपुरी लोकगीतन में भोजपुर के देश बतावल गइल बा। एगो गीत के पंक्ति बा जे-
देस भला भोजपुरी हो सोखा, धरमपुर हो गाँव। बाबा ओतही के ब्राह्मन के अबला, हीरा मोती हो नाँव।।

भोजप्रदेश के चिनगारी अइसही भक से ना लहक गइल. भाषा आ जनसंख्या के राजनीति जब रोजी-रोटी के आधार से जुटेला, त पुरान उपेक्षा-वंचना आ अपमान के मन परेला. अंगरेजन के पलासी के लड़ाई जीत गइला के समय से ही विद्रोह आ दमन के शिकार रहल भोजपुरी क्षेत्र से पलायन सिरिफ आर्थिक कारण से नइखे भइल, राजनीतिक आ सामाजिक कारणों से भइल बा. बाकिर बितलका कुछ बरिस में जबसे देश के भिन्न राज्य आ महानगरन में जातीय आ सांस्कृतिक उत्पीड़न के शिकार होखे लागल, तबसे जवन असंतोष, बेचैनी आ उत्तेजना भोजपुरी क्षेत्र में पसरल बा, ओकरा भाषा के आधार पर एकताबध्द करेके हुंकार करीब सालभर पहिले (नवंबर 2006) भोजपुरी साहित्य सम्मेलन के सासाराम अधिवेशन में फूटल, तब राज्य बनावे खातिर पहिले से कवनो विशेष तइयारी वा सांगठनिक आधार ना रहे. बाकिर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मायावती पूर्वांचल प्रदेश बनावे घोषणा करके ओह चिनगारी पर माटी के तेल ढार देले बाडी.
अलबत्ता, अबहिं फोकस संविधान के आठवां अनुसूची में जगहा बनावल बा. एह आंदोलन के पुरोधा प्रोफेसर प्रभुनाथ सिंह कहनी जे सासाराम अधिवेशन के पहिलका प्रस्ताव इहे रहे. बाकिर भोजपुरी राज्य के सीवान आ शिरखार (सीमा और स्वरुप) लेके ऊहां के कवनो दोहमच में नइखीं. उहाँके कहनाम रहे जे अबहीं देश के कएगो राज्यन में पसरल भोजपुरिया लोगन आ भोजपुरी हलका के एगो प्रशासनिक ढ़ाचा के भीतरी समेटला बिना परिस्थिति के मोकाबिला कइल संभव ना हो सके. ओमें पहिला सवाल राजधानी के लेके उठि सकेला. बाकिर एकरा लेके कवनो समस्या नइखे. काहे से जे कवनो पुरान शहर के राजधानी बनवला से आबादी के बोझा अचानक बढ़ जाइ, जेकरा से ओह शहर के इंतजाम-बात चरमरा जाला. एह से काशी आ गोरखपुर के बीचवट में कवनो निमन जगहा एकरा बसावल जाइ, चंडीगढ जइसन नयका बसाहट के शहर.
भोजप्रदेश के जिकिर पहिलका बेरी नइखे उठल. राज्यन के पुनर्गठन के समय महापंडित राहुल सांस्कृत्यायन के सुझावन पर बत-गिज्जन होखे के त कइगो कारण बतावल जा सकेला, बाकिर देवरिया जिला में सलेमपुर के सांसद रामनरेश कुशवाहा भोजपुरी राज्य निर्माण के सवाल उठवलन रहस. ओह बेरा उत्तरप्रदेश में एकर वातावरण ना बन सकब. बाकिर ऊह सपना ना बुताइल आ उत्तराखंड राज्य के गठन के समांनान्तर उनही के तर्कन के आधार पर पूर्वांचल राज्य के मांग उठत रहल. भोजपुरी साहित्य सम्मेलन के बृजभूषण मिश्र बतवनी जे स्वतंत्रता सेनानी चितू पांडे विधायक भइला पर उत्तरप्रदेश विधानसभा में आ लोकसभा में बलिया के सांसद चन्द्रिका सिंह भोजपुरी में भाषण देके भोजपुरी के मान्यता आ क्षेत्रीय उपेक्षा के खिलाफ पसरत बेचैनी के अभिव्यक्त कर चुकल रहनी. बाकिर भोजपुरिया के देस माने भारत के हृदय क्षेत्र में पांच राज्यन के 30 जिला आ ओही से लागल (लगावरिए) नेपाल के छह जिलन में पसरल एलाका होखे चाहे परदेस अर्थात बंगाल, असाम, पंजाब, महाराष्ट्र आ दिल्ली जइसन जगहन पर पिछला बीस, तीस भा सौ- दूई सौ बरिस में देस बनाके बस गइल लोग, चाहे मारिसस, फीजी, सुरनाम आदि विदेश में देस बनइले लोग. सभहे के एक संगे जोडे़ वाला भाषा भोजपुरी के आजुओ भारतीय संविधान में भाषा के दर्जा नइखे मिलल.
भोजपुरी के मान्यता खातिर 1970 से निरंतर आवाज उठत रहल बा. ओह समय पटना में अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन के गठन भइल आ बिहार के कालेजन में भोजपुरी पढ़ावे के अनुमति मिलल. बाकिर झुनझुना थमाके चुप करावे के प्रयास साबित भइला पर 1992 में सम्मेलन के छपरा अधिवेशन में पशुपति नाथ सिंह के संयोजन में भोजपुरी वाहिनी के गठन भइल आ 22 मार्च 92 के छपरा में लमहर जुलुस निकलल। भोजपुरी कलम नामक पत्रिका निकाल करके पशुपतिनाथ जी भोजपुरी आ भोजपुरिया क्षेत्र के विकास के प्रश्न पर भोजपुरी क्षेत्र के सांसद, विधायक से संपर्क कइल आरंभ कइनी. अबहीं रांची में एगो गैर सरकारी संगठन में कार्यरत पशुपति बाबू कहनी कि ओही समय साफ लउके लागल रहे जे भोजपुरी क्षेत्र में आजादी के बादो कवनो तरह के सरकारी निवेश ना भइला से जबरदस्त बेरोजगारी आ बेचैनी फइले जा रहल बा.
भोजपुरी के संविधान के आठवीं अनुसूची में शामिल करेके सवाल लोकसभा में पहिला बेर जब महाराजगंज(बिहार) के सांसद प्रभुनाथ सिंह उठवनी, तब उनकर विरोध में चंद्रशेखर जी खडिआ गइनी। ऊंहां के राष्ट्र आ राष्ट्रभाषा के विकास के जिकिर ठीकही कइनी, बाकिर कवनो क्षेत्र आ ओकर भाषा के अविकास से देश के विकास ना हो सके, एकर अनदेखी करे से जइसन असंतुलित विकास देश में होखत रहल बा, ओकर प्रभाव अब देखाय लागल बा। अइसे संसद के अगिलके सत्र में सरकार मैथिली के आठवीं अनुसूची में शामिल करेके खातिर संविधान संशोधन विधेयक पेश कर दिहल गइल, तभही से भोजपुरिया समाज में ठगा जाएके भाव पनप रहल बा।

भोजपुरी आंदोलन के एह ताजा दौर में 18 अक्टूबर 1994 के मुबारकपुर अधिवेशन में भोजपुरी अभियान समिति बनावल गइल आ डॉ प्रभुनाथ सिंह के अगुआई में 27 फरवरी 1996 के राष्ट्रपति के ज्ञापन दिहल गइल. भोजपुरी के आठवीं अनुसूची में समावेश आ साहित्य अकादमी से मान्यता के मामिला में सार्थक पहल करेके वचन ऊहां के देहनी. बाकिर कुछउ ना भइला पर 2000 में दिल्ली में विश्व भोजपुरी सम्मेलन बनल आ ओकर कार्यकारी अध्यक्ष सांसद प्रभूनाथ सिंह लोकसभा में गैर सरकारी विधेयक पेश करके ईह मांग जोरदार ढंग से उठवनी. तबहिएं से संसद में एह सवाल बारबार उठि रहल बा. बाकिर 2003 में मैथिली के मान्यता दे दिहल गइल, भोजपुरी के ना. सरकार हरबेर आश्वासन आ घोषणा कर लेवे, बाकिर भोजपुरी खातिर कुछउ होत नइखे.

29 जनवरी 2004 के दिल्ली में भोजपुरी समाज आ पूर्वांचल एकता मंच मिल के जंतर मंतर प जोरदार प्रदर्शन कइलस आ डॉ प्रभुनाथ सिंह के साथे दिल्ली के कांग्रेसी विधायक महाबल मिश्रा, भोजपुरी समाज के अध्यक्ष अजित दूबे, पूर्वांचल एकता मंच के महासचिव शिवाजी सिंह प्रधानमंत्री के जाके ज्ञापन दिहले.

भोजपुरी राज्य के हूंकार सासाराम (रोहतास, बिहार) में 4-5 नवंबर 2006 के अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन के 21वां अधिवेशन में भइल. नामी हिन्दी कवि केदारनाथ सिंह आ प्रो. प्रभुनाथ सिंह एकर प्रस्ताद रखलन. दिनभर बहस-दर-बहस के बाद तीन गो परसताव सबहे मनलस.
पहिला- भोजपुरी के भारतीय संविधान के आठवीं अनुसूची में तुरन्त शामिल कइल जाव.
दोसरका-भोजपुरी के साहित्य अकादमी से मान्यता मिले. आ तेसरका-भोजपुरी राज्य बनावे खातिर जन-जन में अभियान चलावल जाव. एह खातिर भोजप्रदेश निर्माण मोर्चा बनाके एह दिशा में भोजपुरी भाषी जनता के बीच अलख जगावे के दायित्व संयुक्त रूप से डॉ प्रभुनाथ सिंह आ जयकांत सिंह जय के दिहल गइल. अधिवेशन में एक लाख से अधिका लोग आइल रहन। जेकरा में केन्द्रीय मंत्री डॉ रघुवंश प्रसाद सिंह, केन्द्रीय मंत्री मीरा कुमार समेत तमाम सांसद, विधायक, कवि,लेखक, प्रोफेसर, कुलपति, गायक, कलाकार इत्यादि सभहे शामिल रहन.

भाजपा विधायक रामेश्वर चौरसिया खूब बढ-चढ के एकरा पक्ष में बोलनी. बाकिर ऊहों के द संडे इंडियन से कहनी कि भोजपुरी के संविधान के आठवीं अनुसूची में शामिल करे के फइसला केन्द्रीय सरकार बरिसभक पहिले कइलस, तब देरि काहे हो रहल बा समझल कठिन बा. लोकसभा में गृह राज्यमंत्री प्रकाश जायसवाल एकर ऐलानो करि देहनी, अब संसद के विशेषाधिकार हनन के सवाल उठ रहल बा. बाकिर आवश्यक संविधान संशोधन विधेयक पेश करे के बारे में आश्वासन के अलावे कुछो सामने नइखे आवत.
भोजपुरी जनपद के सिरखार प्राचीन काल के काशी आ मल्ल जनपद के मिलाके तइयार होखेला. मल्ल जनपद छपरा से गोरखपुर लगायत हलका बुझल जाला. काशी जनपद के विस्तार ओह समय बहुत बड़हन होखी, आजुओ भोजपुरी भाषी अंचल आ लोगन के काशी के संगे लगाव देखिके एकरा समझल जा सकेला. आजादी के समय जब भाषा आ सांस्कृतिक पहचान के आधार पर राज्यन के गठन होखे लागल तबही हिन्दी भाषी राज्यन के प्राचीन जनपदन के आधार पर गठित करेके सुझाव महापंडित राहुल सांकृत्यायन रखले रहन. बाकिर प्राचीन जनपद के आधुनिक संदर्भ में ना लेके ऊहां के काशिका आ मल्लिका नाँव के दूगो भाषा के कल्पना ठीक ओही तरहे क लेहनी, जे तरहे ग्रिअर्सन बिहारी भाषा के कल्पना करके भोजपुरी, मैथिली आ मगही के ओकर बोली ठहरा देले रहन. नतीजा भइल जे डॉ उदय नारायण तिवारी भोजपुरी के स्वरुप आ विस्तार के सामने ले अइनी त डॉ जयकांत मिश्र मैथिली के महत्व बतावत रह गइनी. एह बत-गिज्जन में भाषा आ बोली के ग्रिअर्सन के विभाजन के मानत हिन्दी के राजभाषा बनावे खातिर जे भाषा नीति अपनावल गइल ओह नीति के वर्चस्व में सउँसे हिन्दी प्रदेश के कुल्ही मातृभाषन के मरण फांद में फँस गइल स्वाभाविक रहे.
गांधीजी भाषावार प्रांत बनावल राजकाज में सबकर हिस्सेदारी खातिर अनिवार्य मानत रहनी, बाकिर मैकाले के शिक्षा नीति के प्रभाव में ऊंहों के बात ना मानल जा सकल. हिन्दी के प्रबल समर्थक वेदप्रकाश वैदिक से एह प्रश्न पर बातचीत कइल गइल, त ऊंहांके जोर देके कहनी जे भोजपुरी के मान्यता आ विकास से हिन्दी अउरी मजबूत होखी, ठीक ओही तरहे जइसे अँगूरी के मजबूत होखे से हथेली में अधिक ताकत आवेला. भाषा वैज्ञानिक सभहे मानेलन जे भाषा के बढ़ावे खातिर बोली के बचावल जरूरी होखेला. बोली के बचावे खातिर ओकर समाज, ओह समाज के संस्कृति आ ओकर विकास के स्वाभाविक स्थिति देवेके पडेला. भोजपुरिया राजनेता सत्ताशीर्ष पर रहन. बाकिर एकरा के ना बुझिलन भा समझि-बुझिके अनजान बनि गइलन.
रामविलास शर्मा लिखले बानी जे सामाजिक विकास के एगो साधन होखेला भाषा, समाज के सँगे-सँगे ऊहो विकसित होखेला. कवनो जाति के दबा के राखल जाय, ओकरा सामाजिक प्रगति के मौका ना दिहल जाय, त एकर प्रभाव भाषा पर जरूर पड़ी. सामाजिक दमन आ बाधा के मोकाबिला करत कवनो जाति आपन भाषा के विकसित कर ले, ई बात दोसर बात बा. एकरा भोजपुरी भाषा आ संस्कृति पर जांचल जाय त पता चली कि धीरज के संगे हड्डी गलाके, लड़-भीड के पुनगी पर पहुंचे के संस्कार आ लखुत भोजपुरी आ भोजपुरिया समाज बचाके रखले बा. बाकिर शिक्षाविद ज्ञानदेव त्रिपाठी के कहनाम जे मातृभाषा में प्रारंभिक शिक्षा ना मिलेसे लइकन में भाषा सिखे के क्षमता नष्ट हो जाले. सशक्त अभिव्यक्ति में समर्थ भोजपुरी जइसन भाषा के समृध्द शब्द-भंडार के सैकड़न शब्द रोज मरि-बिला रहल बाड़न.

बाकिर ऊ भाषागत समृध्दि आ ओकरा से विकसित संस्कृति के विकास के राह ना मिलला से एक ओरी त भोजपुरी फिलिम आ गीतन में फूहड़पन के बाजार चमक रहल बा, दोसर ओरी मेहनत-मजूरी करके पुनगी छुए वाला भोजपुरिया लोगन के ईष्या आ हिंसा के शिकार होखे के पड़ता. ईह सब बिहार के भोजपुरिया ओतने भोगे ला, जेतना उत्तर प्रदेश के भोजपुरिया. एकर जिकिर करत प्राचीन साहित्य आ पुरातत्व के विद्वान जगदीश्वर पांडे कहनी जे सउसे भोजपुरी क्षेत्र के एक संगे आवेके पड़ी, तबहीएं एकर मोकाबिला कइल जा सकेला.

अब एह भाषा के मान्यता ना देवे के पीछे कुछ लोग मुंह दबा के गंवे से कहेला कि एकर साहित्य विकसित नइखे. एकरा जवाब में प्रो. कर्मेन्दु शिशिर ठीके कहले कि उनकरे आधुनिक साहित्य केतना विकसित बा. ऊ कहले कि भोजपुरी के आठवीं अनुसूची में राखे में केहूके विरोध ना होखे के चाहीं. प्रो. कर्मेन्दु शिशिर पटना के एगो कालेज में हिन्दी के व्याख्याता आ प्रतिष्ठित लेखक बानी. महापंडित राहुल सांस्कृत्यायन, हजारी प्रसाद द्विवेदी आ केदारनाथ सिंह के परंपरा में मातृभाषा भोजपुरी के प्रबल समर्थक कर्मेन्दु शिशिर द संडे इंडियन के बतइले कि भाषा के विस्तार आ भाषा-साहित्य के प्राचीनता में एकर स्थान ऊंचा बा. भोजपुरी के उत्स सरहपाद जइसन सिध्द कवियन में मिलेला. सिध्द कवियन के भाषा में प्राकृत आ अपभ्रंश के अइसन शब्द मिलेलन, जेकर आन कइनगो बोलियन में विकास भइल. बाकिर कबीर विशुध्द रूप से भोजपुरी कवि हऊअन. ऊनकरा परंपरा चलत रहल.
भोजपुरी के साहित्य विकसित नइखे, एकरा से इनकार नइखे कइल जात. बाकिर जे सभे भाषन के आठवीं अनुसूची में स्थान दिहल गइल बा, ओह सब के साहित्य केतना विकसित बा. ठवां अनुसूची में समावेश से ओह समाज के कवन लाभ होखी जे एह भाषा के बचवले बा, एह प्रश्न पर प्रध्यापक शिशिर जी के कहनाम रहे कि भाषा के लाभ सदा विशिष्ट जन उठावस. ओही वर्गन के संबोधित करके नीति बनेला. भाषा के माध्यम से ज्ञान पर वर्चस्व बनावे के राजनीति पुरान ह. भाषा नीति ओकरा से आक्रांत भइल बा.
ओने ब्रजभूषण मिश्र कहले कि भोजपुरी आधुनिक साहित्य के देखिं त सही. ब्रजभूषण मिश्र, कांटी थर्मल पावर स्टेशन में इंजिनीयर बानीं आ भोजपुरी साहित्य के समालोचना में सतत सक्रिय लेखक हईं. ऊ कहले कि भोजपुरी के आजुके साहित्य के चर्चा विष्णुकमल डेका आ धीरज कुमार भट्टाचार्य के बिना ना हो सके. आसाम के नगांव वासी खांटी असमिया विष्णुकमल भोजपुरी के भाव-व्यंजना सामर्थ्य से एतना मोहित भइनी के भोजपुरी कवि हो गइनी. धीरज भट्टाचार्य के तब बिहार में खून-खराबा के माहऊल बन गइला से साहेबगंज छोड के जाएके परल, बाकिर ऊहांके कविवर रविन्द्रनाथ ठाकुर के जे नाटकन के भोजपुरी अनुवाद करिके गइनी, ऊ भोजपुरी के थाती बा. साहेबगंज में कबीर पुस्तकालय चलावे से लेके भोजपुरी संबंधित आयोजनन में आर्थिक, दैहिक आ बौध्दिक योगदान के हमेशा स्मरण कइल जाइ. प्राचीनता आ विस्तार में भोजपुरी दुनिया में स्थान राखेला. कठिनाइ सिरिफ एहसे बा जे भोजपुरी के अकादमिक स्वरुप नइखे उभरल. बाकिर बिहार भोजपुरी अकादमी अगर एगो काम कइले बा त 1883 से 1983 के बीच प्रकाशित भोजपुरी ग्रंथन के विवरण तइयार करके प्रकाशित कर दिहले बा. हजारन कमजोरी हो सकेले, बाकिर भोजपुरी साहित्य के इतिहास आ अन्य ग्रंथ लिखल जा रहल बा. सृजनात्मक साहित्य के सतत प्रवाह चल रहल बा.
बौध्द इतिहास आ पुरातत्व के प्रकांड पंडित जगदीश्वर पांडे, के.पी जायसवास शोध संस्थान, पटना के निदेशक रहनी. बौध्द साहित्य पर निरंतर लेखन में लागल बानी. उनकर कहनाम बा कि भोजपुरी में ढेरन अइसन शब्द मिलेलन, जिनकर उदगम वेद के भाषा में बा. जइसे, दूलम --दुर्लभ के अर्थ में एह शब्द के प्रयोग होला. बाकिर भाषा के रूप में भोजपुरी के प्राण ओकर कहावत हवन। सशक्त अभिव्यक्ति के जइसन क्षमता भोजपुरी में बा, ओकरा देखके भाषा-वैज्ञानिक कुल्हि हरान रहि गइलन. बाकिर भोजपुरी में ओह स्तर के पुस्तक नइखे, जे स्तर के असमिया भा बांग्ला में लिखल जा रहल बा. भाषा आ साहित्य के बचावे आ बढ़ावे खातिर ओह तरहे कवनो काम नइखे होखत, जेह तरेह से आन जगह हो रहल बा. आठवीं अनुसूची में स्थान मिलल आवश्यक बा, बाकिर ओतने से भोजपुरी के प्राण ना बाची. एकर प्रयोजन मूलक स्वरुप बनावे के होखी. भोजपुरी के नांव पर फूहड़पन के जे व्यापार चल रहल बा, ओकरा देखके माथा गिरा लेवे के पढ़ेला. ओकर मोकाबिला करे के आ भोजपुरिया संस्कृति के बजावे-बढ़ावे खातिर संउसे भोजपुरिया क्षेत्र के एक साथ जोडे़ के पड़ी. भाषा के आधार पर सउंसे भोजपुरिया क्षेत्र के एगो प्रशासनिक इकाई बनवला के लाभ निश्चत होखी. बलुक एकरा बिना भाषा-संस्कृति ना बांचे.

दिल्ली में मुख्यमंत्री शीला दीक्षित जब भोजपुरी आ मैथिली के मिला के अकादमी बनावे के घोषणा कइली त ई भाषा बोले वाला लोगन के मन खुशी से गनगना गइल. ई कवनो मामूली बात नइखे कि जवन भाषा के अबहीं संविधान में मान्यता नइखे मिलल, ओकरा के देश के राजधानी में अकादमी बना के सम्मान दे दीहल गइल. एकरा में कवनो दू राय नइखे कि एकरा पीछे उनकर इरादा दिल्ली में रहे वाला भोजपुरी आ मैथिली के लाखन लोग के भोट लेवे के होई. बाकिर तबहूं ऊ काम त कइली.

भोजपुरी भाषा, साहित्य आ संस्कृति के संरक्षण आ संवर्ध्दन के राजकीय समर्थन मिले के प्रक्रिया 1970 के दशक में आरंभ भइल। तब पंडित केदार पांडे बिहार के मुख्यमंत्री रहनी. भोजपुरी अकादमी के गठन आ भोजपुरी पढावे के अनुमति देवे के फइसला सरकार ओही समय कइलस. बाकिर सरकार के ओह फइसला के कार्यरुप में परिणत होखे में बरिसन लाग गइल आ आजुओ पूरा-पूरी नइखे भइल.
भोजपुरी भाषा, साहित्य आ संस्कृति के विकास खातिर स्थापित भोजपुरी अकादमी के बिहार सरकार 1978 में मान्यता दिहलस. बाकिर सरकारी उपेक्षा, घोर अराजकता, वित्तीय संकट आ तमाम तरह के अनियमितता के शिकार ई अकादमी अपना जिनिगी के आखिरी सांस लेत प्रतीत होखता. भोजपुरी अकादमी के हालत पिछलका कइएक बरीसन में दयनीय होत गइल बा. एक त स्थापना के छे साल बाद पूरा सरकारी मान्यता मिल सकल. ओकरा पर भ्रष्ट राजनैतिक माहौल से उपजल पैरवी पुत्रन के निदेशक आ अध्यक्ष के कुर्सी हथिया के भोजपुरी के विकास के संभावना खतम कइल जा रहल बा. भोजपुरी पुस्तकन के प्रकाशन आ वितरण के कवनो ठोस व्यवस्था नइखे हो पावत. केहू के लिखल उम्दा साहित्य छपावेके जोगाड़, पइसा नइखे जुटत, त पइसा वाला लोगन के अइसनो चीज छप के सामने आ जाता जवना से भोजपुरी साहित्य के सही स्वरूप सामने नइखे आ पावत. ओही तरह के स्तरहीन पुस्तकन से भोजपुरी साहित्य के मूल्यांकन गड़बड़ा जाता आ ओह तरह के मूल्यांकन प्रकारान्तर से भोजपुरी के नोकसान क रहल बा. ठीक ओही तरह, जइसे स्तरहीन गीतन के कैसेट भोजपुरी के परंपरागी लोकगीतन के सँगे-सँगे युगबोध आ जनचेतना से जुड़ल मर्मस्पर्शी आधुनिक गीतन के पहिचान नइखे बने देत. भोजपुरी फिलिमन के फूहड़पन आ शीलहीन चालचलन से भोजपुरियन के बेभरम होखे पड़ता.

एने दिल्ली में राज्य सरकार से भोजपुरी अकादमी के गठन भइल ह, बाकिर भोजपुरी आ मैथिली अकादमी एके संगे बा. एकर सदस्य अजित दूबे बतवले कि साइत एकरा पीछे कारण ई बा कि अबहीं तकले भोजपुरी के संविधान से मान्यता नइखे मिलल.
ई सांच बा कि राजकीय सहयोग मिलला से विलुप्तो भाषा जाग जाला. डॉ राजेश्वरी शांडिल्य के कहनाम बा कि भाषा के विनाश आ पुनर्जागरण के सबसे निमन उदाहरण इजराइल के हिब्रू भाषा से मिलेला. भोजपुरी आ हिन्दी में बीसियो पुस्तकन के रचनिहार डॉ. राजेश्वरी शांडिल्य लखनऊ में रहेनी. ऊहां के दूगो पुस्तक-भोजपुरी एकःप्रश्न अनेक, आ एगो भोजपुरीः ओकर कई गो नाँव-गाँव, छपल बा. ऊ कहले बाड़न कि सन 1948 के पहिले हिब्रू भाषा लगभग मर चुकल रहे. काहे कि अधिककांश इज्राइली अपना देश फिलीस्तीन के छोड़ के भिन्न-भिन्न देशन में जाके शरण लिहले रहलन. जे जहां गइल ऊहें के भाषा, संस्कृति में रम गइल. हिब्रू भाषा आ संस्कृति के केहू पुछवइया ना रहे. आही से ओकर दम निकले लागल. सन 1948 के बाद जब इस्राइलियन के आपन देश वापिस मिलल त ऊ लोग धीरे-धीरे अपना देश में पहुंचे लागल. जवन कामचलाऊ सरकार उहाँ बनल ऊ सबके आमंत्रण दिहलस कि जे भी देश छोड़के गइल बा सभहे वापिस आ जाय. बहुत लोग वापस आइल. सबसे पूछ के, पुरान पोथी-पतरा से देखि के इस्राइली भाषा के रूप खड़ा कइल गइल. आजु स्थिति में एतना परिवर्तन आ गइल बा कि मात्र पचास-साठ बरिस में हिब्रू भाषा विश्व के समृध्द भाषन में से एगो भाषा बन गइल बा. अइसे हिब्रू में कइगो भाषागत कमजोरी बा. उर्दू के तरह दायें से बायें लिखाले आ एमें पर्याप्त मात्रा, स्वर आ व्यंजन ना ह. बाकिर ओही आधा-अधूरी भाषा से ऊ लोग शुरू कइलख. अब ओमें विज्ञान, अंतरिक्ष, कृषि, रहन-सहन आदि के शब्दन के कमी नइके आ केवल अपने बल पर आज इस्राइल सउसे दुनिया के सामने ताल ठोकले बा. बोलनिहार लोगन के आत्मियता आ राजसत्ता के सहायता से कवनो भाषा आ समाज के विकास से एकरा से निमन उदाहरण का हो सकेला.
कहे के त भोजपुरिया लोग बड़ा सान से कही कि आरा जिला घर बा त कवन बात के डर बा. डर त सांचहूं नइखे. ऊ भागे वाला जीव ना हवें. इतिहास में भोजपुरिया लोग के बहादुर मरद ठीके मानल जाला. बाबू वीर कुंवर सिंह एकरा के साबितो क देले. अंगरेजन से डट के मुकबिला आ गोली लगला प आपन हाथ अपने से काट के गंगाजी में डाल देवे वाला मरद ऊ भोजपुरिया रहे. देस-दुनिया में कइसन कइसन भोजपुरिया हस्ती भइल बाड़े एकर लिस्ट लंबा बा. भोजपुरिया भाषा के आज तकले मान्यता ना मिले के पीछे असल में भोजपुरिया लोगन के सबसे बड़ कमजोरी ई बा कि ऊ अपना बारे में तनी कम सोचेले, दोसरा के बारे में जादा.

बतवला के गरज ना होखे के चाहीं कि चाहे असाम होखे वा पंजाब आ मुंबई, उहां के आदमी बिहार आ यूपी सबहे भोजपुरिया के बिहारी कहेलन. बितलका दू-चार साल से जे सब बिहारी लोगन के मारपीट कके बेलगा देवे के हाल सूनल जाता, ओह में बलिया-गाजीपुर आ आरा-छपरा के आदमी में कवनो भेद ना रहे.
भोजपुरी क्षेत्र Later Shershah Suri from this region (also known as Sher khan from Ara) challenged the might of Moghuls in Buxur Battle, and became the Emperor of India.से ही शेरशाह सूरी ( शेर खान से भी जाना जाता) आवेलन जे समूचा भारत के एक करे खातिर कलकत्ता से लाहौर तक ग्रांड ट्रंक रोड बनववले रहन.
एह क्षेत्र के ब्रिटिश सेना के एगो साधारण सिपाहीThe pioneer of first freedom struggle of India, Mangal Pandey belonged to this region, an ordinary sepoy in British Army, challenged the might of British ruler. Mangal Pandey ignited the spark of revolt which engulfed the whole of north India. मंगल पांडे प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में ब्रिटिश शासन के चुनौती दे के अइसन जलजला पैदा क देले कि विद्रोह के चिंगारी पूरा उत्तर भारत में फइल गइल.
Later Veer Kunwar Singh from Ara joined this struggle and taught a good lesson to the ruler. बाद में आरा के बाबू वीर कुंवर सिंह ई संघर्ष में शामिल भइले आ अंगरेजन के अच्छा सबक सिखवले.An eighty year old man, Veer Kunwar Singh remained invincible and could not be captured by British. अस्सी बरिस के वीर कुंवर सिंह अपराजेय बनल रहले आ ब्रिटेन उनका के पकड़ ना सकलस. गंगा नदी पार करत जब उनका धराए के शंका भइल त ऊ अपना बाएं हाथ में गोली मार दीहले आ जय गंगे कह के गंगा जी में चढ़ा दीहले. As the saying goes, he cut his arm and offered it to the River Ganga. Dr Rajendra Prasad from Chapra, the first President of India was a genius and never studied a book twice. छपरा से डॉ. राजेंद्र प्रसाद भारत के पहिला राष्ट्रपति भइले. ऊ अइसन प्रतिभा रहन कि एगो पुस्तक कभी दू बार ना पढ़ले, आ जे पढ़ले सब याद हो गइल.He used to memorise whatever he read. ऊ स्कूल-कॉलेज के सब रिकॉर्ड तूड़ देले. चाहे छपरा के जिला स्कूल होखे आ कि प्रेसीडेंसी कॉलेज कोलकाता . छात्र के इतिहास में उनके ई टिप्पणी मिलल कि '' परीक्षार्थी परीक्षक से बेहतर है ". त अइसन प्रतिभाशाली लोग भइले भोजपुरी में.